Thursday, June 27, 2013



400 साल तक बर्फ के नीचे दबा था केदारनाथ मंदिर...
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केदारनाथ मंदिर की एक और ऐसी हकीकत जिससे कम लोग ही वाकिफ होंगे। वैज्ञानिकों के मुताबिक केदारनाथ मंदिर 400 साल तक बर्फ के नीचे दबा था, लेकिन फिर भी उसे कुछ नहीं हुआ। इसीलिए जियोलॉजिस्ट और वैज्ञानिक इस बात से हैरान नहीं हैं कि ताजा जलप्रलय में केदारनाथ मंदिर बच गया।
400 साल तक बर्फ के नीचे दबा था केदारनाथ मंदिर,
चार सौ साल तक ग्लेशियर से ढंका था केदारनाथ मंदिर।
चार सौ साल तक ग्लेशियर के भयानक बोझ को सह चुका है केदारनाथ मंदिर।

जी हां, ये कहना है देहरादून के वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों का। शायद यही वजह है कि केदारनाथ मंदिर को जल प्रलय के थपेड़ों से कोई नुकसान नहीं हुआ।

केदारनाथ मंदिर के पत्थरों पर पीली रेखाएं हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक ये निशान दरअसल ग्लेशियर के रगड़ से बने हैं। ग्लेशियर हर वक्त खिसकते रहते हैं और जब वो खिसकते हैं तो उनके साथ न सिर्फ बर्फ का वजन होता है बल्कि साथ में वो जितनी चीजें लिए चलते हैं वो भी रगड़ खाती हुई चलती हैं। अब सोचिए जब करीब 400 साल तक मंदिर ग्लेशियर से दबा रहा होगा तो इस दौरान ग्लेशियर की कितनी रगड़ इन पत्थरों ने झेली होगी। वैज्ञानिकों के मुताबिक मंदिर के अंदर की दीवारों पर भी इसके साफ निशान हैं। बाहर की ओर पत्थरों पर ये रगड़ दिखती है तो अंदर की तरफ पत्थर ज्यादा समतल हैं जैसे उन्हें पॉलिश किया गया हो।

दरअसल 1300 से लेकर 1900 ईसवीं के दौर को लिटिल आईस एज यानि छोटा हिमयुग कहा जाता है। इसकी वजह है इस दौरान धरती के एक बड़े हिस्से का एक बार फिर बर्फ से ढंक जाना। माना जाता है कि इसी दौरान केदारनाथ मंदिर और ये पूरा इलाका बर्फ से दब गया और केदारनाथ धाम का ये इलाका भी ग्लेशियर बन गया। केदारनाथ मंदिर की उम्र को लेकर कोई दस्तावेजी सबूत नहीं मिलते। इस बेहद मजबूत मंदिर को बनाया किसने इसे लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं। कुछ कहते हैं कि 1076 से लेकर 1099 विक्रमसंवत तक राज करने वाले मालवा के राजा भोज ने ये मंदिर बनवाया था। तो कुछ कहते हैं कि आठवीं शताब्दी में ये मंदिर आदिशंकराचार्य ने बनवाया था। बताया जाता है कि द्वापर युग में पांडवों ने मौजूदा केदारनाथ मंदिर के ठीक पीछे एक मंदिर बनवाया था। लेकिन वो वक्त के थपेड़े सह न सका। वैसे गढ़वाल विकास निगम के मुताबिक मंदिर आठवीं शताब्दी में आदिशंकराचार्य ने बनवाया था। यानि छोटे हिमयुग का दौर जो कि 1300 ईसवी से शुरू हुआ उससे पहले ही मंदिर बन चुका था।

वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने केदारनाथ इलाके की लाइकोनोमेट्रिक डेटिंग भी की, लाइकोनोमेट्रिक डेटिंग एक तकनीक है जिसके जरिए पत्थरों और ग्लेशियर के जरिए उस जगह की उम्र का अंदाजा लगता है। ये दरअसल उस जगह के शैवाल और कवक को मिलाकर उनके जरिए समय का अनुमान लगाने की तकनीक है। लाइकोनोमेट्रिक डेटिंग के मुताबिक छोटे हिमयुग के दौरान केदारनाथ धाम इलाके में ग्लेशियर का निर्माण 14वीं सदी के मध्य में शुरू हुआ। और इस घाटी में ग्लेशियर का बनना 1748 ईसवीं तक जारी रहा। अगर 400 साल तक ये मंदिर ग्लेशियर के बोझ को सह चुका है और सैलाब के थपेड़ों को झेलकर बच चुका है तो जाहिर है इसे बनाने की तकनीक भी बेहद खास रही होगी। जाहिर है शायद इसे बनाते वक्त इन बातों का ध्यान रखा गया होगा कि ये कहां है क्या ये बर्फ, ग्लेशियर और सैलाब के थपेड़ों को सह सकता है।

दरअसल केदारनाथ का ये पूरा इलाका चोराबरी ग्लेशियर का हिस्सा है। ये पूरा इलाका केदारनाथ धाम और मंदिर तीन तरफ से पहाड़ों से घिरा है। एक तरफ है करीब 22 हजार फीट ऊंचा केदारनाथ। दूसरी तरफ है 21,600 फीट ऊंचा खर्चकुंड। तीसरी तरफ है 22,700 फीट ऊंचा भरतकुंड। न सिर्फ तीन पहाड़ बल्कि पांच नदियों का संगम भी है यहां मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णद्वरी। वैसे इसमें से कई नदियों को काल्पनिक माना जाता है। लेकिन यहां इस इलाके में मंदाकिनी का राज है यानि सर्दियों में भारी बर्फ और बारिश में जबरदस्त पानी। जब इस मंदिर की नींव रखी गई होगी तब भी शिव भाव का ध्यान रखा गया होगा। शिव जहां रक्षक हैं वहीं शिव विनाशक भी हैं। इसीलिए शिव की आराधना के इस स्थल को खास तौर पर बनाया गया। ताकि वो रक्षा भी कर सके और विनाश भी झेल सके। 85 फीट ऊंचा, 187 फीट लंबा और 80 फीट चौड़ा है केदारनाथ मंदिर। इसकी दीवारें 12 फीट मोटी हैं और बेहद मजबूत पत्थरों से बनाई गई हैं। मंदिर को 6 फीट ऊंचे चबूतरे पर खड़ा किया गया है।

ये हैरतअंगेज है कि इतने साल पहले इतने भारी पत्थरों को इतनी ऊंचाई पर लाकर, यूं तराश कर कैसे मंदिर की शक्ल दी गई होगी। जानकारों का मानना है कि केदारनाथ मंदिर को बनाने में, बड़े पत्थरों को एक दूसरे में फिट करने में इंटरलॉकिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया होगा। ये तकनीक ही नदी के बीचों बीच खड़े मंदिरों को भी सदियों तक अपनी जगह पर रखने में कामयाब रही है।

लेकिन ताजा जल प्रलय के बाद अब वैज्ञानिकों को इस बात का खतरा सता रहा है कि लगातार पिघलते ग्लेशियर की वजह से। ऊपर पहाड़ों में मौजूद सरोवर लगातार बढ़ते जा रहे हैं और जैसा कि केदारनाथ में हुआ। गांधी सरोवर ज्यादा पानी से फट कर नीचे सैलाब की शक्ल में आया। वैसा आगे भी हो सकता है और अगर मंदिर पहाड़ों से गिरे इस चट्टानों के लीधे ज़द में आ गया तो उसे बड़ा नुकसान हो सकता है। साथ ही ये खतरा केदारनाथ घाटी पर हमेशा के लिए मंडराता रहेगा।
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तिथि - तृतीया, आषाढ़ मास, कृष्ण पक्ष, दिन बुद्धवार, विक्रम संवत २०७०
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हर हर महादेव !




Tuesday, June 4, 2013

बाल समय रवि भक्षि लियो तब





बाल समय रवि भक्षि लियो तब
तीनहुं लोक भयो अंध्यिारों
ताहि सो त्रास भयो जग को
यह संकट काहू से जात न टारो
देवन आन करी विनती तब
छाड़ दियो रवि कष्ट निवारो
को नहीं जानत है जग में कपि
संकट मोचन नाम तिहारो।!!!۞!!! 

अर्थात खेल ही खेल में जब बालक हनुमान ने सूर्य को फल समझ कर मुंह में दबा लिया, तो तीनों लोगों में अंधकार छा गया। हाहाकार मच गई, किसी से यह संकट दूर नहीं हुआ तो देवतागण भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु सारा मामला समझ कर हनुमान जी के पास आए उनकी स्तुति की तब जाकर उन्होंने सूर्य को मुंह से बाहर निकाला और तीनों लोकों का अंधकार खत्म हुआ। हनुमान जी के पठन पाठन का प्रसंग भी काफी दिलचस्प है। इनके पिता पवन ;वायु ने बालक हनुमान को वेदों का पठन पाठन कराने के लिए सूर्य देव से आग्रह किया, लेकिन हनुमान जी की बाल क्रीडा के भुक्त भोगी सूर्य ने कहा कि मेरा ;सूर्यद्ध स्वभाव स्थिर नहीं बल्कि चलायमान हैं। अतः हनुमान जी को चलायमान अवस्था में वेदोपाठ कराना असंभव है। मेरे स्वभाव में स्थिरता नहीं होने से नियमित पढ़ाई नहीं हो सकती। यह देखकर हनुमान जी आकाश मार्ग से सूर्य की ओर मुंह करके पैरों से पीछे की ओर प्रसन्न मन से बानर के बच्चे के समान गमन कर पढ़ने लगे। उनके इस प्रयास से पाठ्यक्रम में किसी प्रकार का भ्रम नहीं हुआ। उनके इस आश्चर्यजनक खेल को देखकर इन्द्र, ब्रहमा, विष्णु, महेश आदि देवों की आंखें चकाचैंध् हो गई। अर्थात इन देवों ने मन में हनुमान जी की इस क्रीडा से घबराहट हो गई। वे विचार करने लगे कि क्या ये वीरता के भंडार हैं या वीर रस हैं, अथवा स्वयं धैर्य और साहस है। तुलसीदासजी कहते हैं कि देवता इस दुविधा में हैं कि क्या हनुमान जी का शरीर इन सबका सार रूप धरण किये हुए हैं। बालक हनुमान की इस लीला के बाद ही सूर्य देव ने इन्हें वेद शास्त्रों का अध्ययन शुरू कराया। वेद शास्त्रों का ज्ञान पूरा होने पर सूर्य ने गुरू दक्षिणा के रूप में अपने पुत्र सुग्रीव की रक्षा का वचन मांगा, तो न केवल सुग्रीव को भाई बाली के कोप से बचाया बल्कि उन्हें प्रभु श्रीराम से मिला दिया अर्थात सीध्े परमात्मा से मिला दिया। गोस्वामी तुलसीदास जी जीवन अनुभव की बात कहते हैं कि भयानक रावण रूपी दरिद्रता को नष्ट करने के लिए पवनपुत्र का तेज तीनों लोकों में विश्राम गृह है। सेवा में ;दूसरों के हित के लिए सतर्क रहते हुए आप ज्ञानी, गुणवान तथा बलवान हैं इन गुणों का अधिकारी ही सेवारत होता है।