Sunday, March 31, 2013



 मित्रो

सनातन धर्म के अनुसार भोजन ग्रहण करने के कुछ नियम है !!!!! इम्मंदारी से बताइयेगा की कितने लोग इसे मानते है

भोजन सम्बन्धी कुछ नियम
भोजन सम्बन्धी कुछ नियम
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भोजन सम्बन्धी कुछ नियम
१ पांच अंगो ( दो हाथ , २ पैर , मुख ) को अच्छी तरह से धो कर ही भोजन करे !
२. गीले पैरों खाने से आयु में वृद्धि होती है !
३. प्रातः और सायं ही भोजन का विधान है !
४. पूर्व और उत्तर दिशा की ओर मुह करके ही खाना चाहिए !
५. दक्षिण दिशा की ओर किया हुआ भोजन प्रेत को प्राप्त होता है !
६ . पश्चिम दिशा की ओर किया हुआ भोजन खाने से रोग की वृद्धि होती है !
७. शैय्या पर , हाथ पर रख कर , टूटे फूटे वर्तनो में भोजन नहीं करना चाहिए !
८. मल मूत्र का वेग होने पर , कलह के माहौल में , अधिक शोर में , पीपल , वट वृक्ष के नीचे , भोजन नहीं करना चाहिए !
९ परोसे हुए भोजन की कभी निंदा नहीं करनी चाहिए !
१०. खाने से पूर्व अन्न देवता , अन्नपूर्णा माता की स्तुति कर के , उनका धन्यवाद देते हुए , तथा सभी भूखो को भोजन प्राप्त हो इस्वर से ऐसी प्राथना करके भोजन करना चाहिए !
११. भोजन बनने वाला स्नान करके ही शुद्ध मन से , मंत्र जप करते हुए ही रसोई में भोजन बनाये और सबसे पहले ३ रोटिया अलग निकाल कर ( गाय , कुत्ता , और कौवे हेतु ) फिर अग्नि देव का भोग लगा कर ही घर वालो को खिलाये !
१२. इर्षा , भय , क्रोध , लोभ , रोग , दीन भाव , द्वेष भाव , के साथ किया हुआ भोजन कभी पचता नहीं है !
१३. आधा खाया हुआ फल , मिठाईया आदि पुनः नहीं खानी चाहिए !
१४. खाना छोड़ कर उठ जाने पर दुबारा भोजन नहीं करना चाहिए !
१५. भोजन के समय मौन रहे !
१६. भोजन को बहुत चबा चबा कर खाए !
१७. रात्री में भरपेट न खाए !
१८. गृहस्थ को ३२ ग्रास से ज्यादा न खाना चाहिए !
१९. सबसे पहले मीठा , फिर नमकीन , अंत में कडुवा खाना चाहिए !
२०. सबसे पहले रस दार , बीच में गरिस्थ , अंत में द्राव्य पदार्थ ग्रहण करे !
२१. थोडा खाने वाले को --आरोग्य , आयु , बल , सुख, सुन्दर संतान , और सौंदर्य प्राप्त होता है !
२२. जिसने ढिढोरा पीट कर खिलाया हो वहा कभी न खाए !
२३. कुत्ते का छुवा , रजस्वला स्त्री का परोसा , श्राध का निकाला , बासी , मुह से फूक मरकर ठंडा किया , बाल गिरा हुवा भोजन , अनादर युक्त , अवहेलना पूर्ण परोसा गया भोजन कभी न करे !
२४. कंजूस का , राजा का , वेश्या के हाथ का , शराब बेचने वाले का दिया भोजन कभी नहीं करना चाहिए !


हजारों वर्षों से जीवित है सात महामानव



हजारों वर्षों से जीवित है सात महामानव

श्लोक : 'अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषणः। कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरंजीविनः॥'
अर्थात् : अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और भगवान परशुराम ये सभी चिरंजीवी हैं।

यह दुनिया का एक आश्चर्य है। विज्ञान इसे नहीं मानेगा, योग और आयुर्वेद कुछ हद तक इससे सहमत हो सकता है, लेकिन जहाँ हजारों वर्षों की बात हो तो फिर योगाचार्यों के लिए भी शोध का विषय होगा। इसका दावा नहीं किया जा सकता और इसके किसी भी प्रकार के सबूत नहीं है। यह आलौकिक है। किसी भी प्रकार के चमत्कार से इन्कार ‍नहीं किया जा सकता। सिर्फ शरीर बदल-बदलकर ही हजारों वर्षों तक जीवित रहा जा सकता है। यह संसार के सात आश्चर्यों की तरह है।

हिंदू इतिहास और पुराण अनुसार ऐसे सात व्यक्ति हैं, जो चिरंजीवी हैं। यह सब किसी न किसी वचन, नियम या शाप से बंधे हुए हैं और यह सभी दिव्य शक्तियों से संपन्न है। योग में जिन अष्ट सिद्धियों की बात कही गई है वे सारी शक्तियाँ इनमें विद्यमान है। यह परामनोविज्ञान जैसा है, जो परामनोविज्ञान और टेलीपैथी विद्या जैसी आज के आधुनिक साइंस की विद्या को जानते हैं वही इस पर विश्वास कर सकते हैं। आओ जानते हैं कि हिंदू धर्म अनुसार कौन से हैं यह सात जीवित महामानव।

1. बलि : राजा बलि के दान के चर्चे दूर-दूर तक थे। देवताओं पर चढ़ाई करने राजा बलि ने इंद्रलोक पर अधिकार कर लिया था। बलि सतयुग में भगवान वामन अवतार के समय हुए थे। राजा बलि के घमंड को चूर करने के लिए भगवान ने ब्राह्मण का भेष धारण कर राजा बलि से तीन पग धरती दान में माँगी थी। राजा बलि ने कहा कि जहाँ आपकी इच्छा हो तीन पैर रख दो। तब भगवान ने अपना विराट रूप धारण कर दो पगों में तीनों लोक नाप दिए और तीसरा पग बलि के सर पर रखकर उसे पाताल लोक भेज दिया।

2. परशुराम : परशुराम राम के काल के पूर्व महान ऋषि रहे हैं। उनके पिता का नाम जमदग्नि और माता का नाम रेणुका है। पति परायणा माता रेणुका ने पाँच पुत्रों को जन्म दिया, जिनके नाम क्रमशः वसुमान, वसुषेण, वसु, विश्वावसु तथा राम रखे गए। राम की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें फरसा दिया था इसीलिए उनका नाम परशुराम हो गया।
भगवान पराशुराम राम के पूर्व हुए थे, लेकिन वे चिरंजीवी होने के कारण राम के काल में भी थे। भगवान परशुराम विष्णु के छठवें अवतार हैं। इनका प्रादुर्भाव वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हुआ, इसलिए उक्त तिथि अक्षय तृतीया कहलाती है। इनका जन्म समय सतयुग और त्रेता का संधिकाल माना जाता है।

3. हनुमान : अंजनी पुत्र हनुमान को भी अजर अमर रहने का वरदान मिला हुआ है। यह राम के काल में राम भगवान के परम भक्त रहे हैं। हजारों वर्षों बाद वे महाभारत काल में भी नजर आते हैं। महाभारत में प्रसंग हैं कि भीम उनकी पूँछ को मार्ग से हटाने के लिए कहते हैं तो हनुमानजी कहते हैं कि तुम ही हटा लो, लेकिन भीम अपनी पूरी ताकत लगाकर भी उनकी पूँछ नहीं हटा पाता है।

4. विभिषण : रावण के छोटे भाई विभिषण। जिन्होंने राम की नाम की महिमा जपकर अपने भाई के विरु‍द्ध लड़ाई में उनका साथ दिया और जीवन भर राम नाम जपते रहें।

5. ऋषि व्यास : महाभारतकार व्यास ऋषि पराशर एवं सत्यवती के पुत्र थे, ये साँवले रंग के थे तथा यमुना के बीच स्थित एक द्वीप में उत्पन्न हुए थे। अतएव ये साँवले रंग के कारण 'कृष्ण' तथा जन्मस्थान के कारण 'द्वैपायन' कहलाए। इनकी माता ने बाद में शान्तनु से विवाह किया, जिनसे उनके दो पुत्र हुए, जिनमें बड़ा चित्रांगद युद्ध में मारा गया और छोटा विचित्रवीर्य संतानहीन मर गया।

कृष्ण द्वैपायन ने धार्मिक तथा वैराग्य का जीवन पसंद किया, किन्तु माता के आग्रह पर इन्होंने विचित्रवीर्य की दोनों सन्तानहीन रानियों द्वारा नियोग के नियम से दो पुत्र उत्पन्न किए जो धृतराष्ट्र तथा पाण्डु कहलाए, इनमें तीसरे विदुर भी थे। व्यासस्मृति के नाम से इनके द्वारा प्रणीत एक स्मृतिग्रन्थ भी है। भारतीय वांड्मय एवं हिन्दू-संस्कृति व्यासजी की ऋणी है।

6. अश्वत्थामा : अश्वथामा गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र हैं। अश्वस्थामा के माथे पर अमरमणि है और इसीलिए वह अमर हैं, लेकिन अर्जुन ने वह अमरमणि निकाल ली थी। ब्रह्मास्त्र चलाने के कारण कृष्ण ने उन्हें शाप दिया था कि कल्पांत तक तुम इस धरती पर जीवित रहोगे, इसीलिए अश्वत्थामा सात चिरन्जीवियों में गिने जाते हैं। माना जाता है कि वे आज भी जीवित हैं तथा अपने कर्म के कारण भटक रहे हैं। हरियाणा के कुरुक्षेत्र एवं अन्य तीर्थों में यदा-कदा उनके दिखाई देने के दावे किए जाते रहे हैं। मध्यप्रदेश के बुरहानपुर के किले में उनके दिखाई दिए जाने की घटना भी प्रचलित है।

7. कृपाचार्य : शरद्वान् गौतम के एक प्रसिद्ध पुत्र हुए हैं कृपाचार्य। कृपाचार्य अश्वथामा के मामा और कौरवों के कुलगुरु थे। शिकार खेलते हुए शांतनु को दो शिशु प्राप्त हुए। उन दोनों का नाम कृपी और कृप रखकर शांतनु ने उनका लालन-पालन किया। महाभारत युद्ध में कृपाचार्य कौरवों की ओर से सक्रिय थे — with Virendra Singh Rathore Ratdiya, Prakash Narayanan, Viren Rakholiya and 37 others.


वन्देमातरम जिसे स्वीकार नही है , भारत की अस्मिता से उसे प्यार नही है।
भारत को माता कहने मेँ आये जिसे शर्म , भारत मेँ रहने का वो हकदार नही है।।

भारत माता की जय 
वन्देमातरम 







हिन्दू के यहाँ पैदा होनेसे ही कोई ज्ञान आ जाता है क्या...??..वो विरासत का ज्ञान खुद प्राप्त करना पड़ता है..बेवकूफी हम हिन्दुओं की भी तो है..सिर्फ एक सनातन धर्मी के यहाँ पैदा हो गये बस..अपने ना धर्म के बारे मे जानते हैं..ना ये समझते है कि किस व्यवस्था का निर्माण क्यों हुआ है..उनके क्या कार्य है..क्या अधिकार है..और क्या फर्ज हैं..आम तौर पर ये लग अलग क्यों रहते हैं..अलग रहकर भी समाज के संपर्क मे क्यों रहते हैं अथवा रहना पड़ता है..समाज मे उनके क्या महत्व और योगदान होते हैं..वे किन बातों मे और किस हद तक कहाँ कहाँ हस्तक्षेप कर सकते हैं..उन्हे ऐसा क्यों करना चाहिये..धर्म क्या है..अधर्मी जो सवाल पूछते हैं..उनके क्या समाधन और उत्तर होते हैं,धर्म का अर्थ क्या है..और ये हमारे लिये क्या महत्वपूर्ण है..क्या कर्म-काण्ड और रस्मे धर्म हैं..क्या रूढियाँ धर्म होती हैं..हमारा जीवन कैसा हो..हम क्यो हैं?पूजन क्या होता है,जीवन कैसे जिये...कुछ नही सोचा...सिर्फ एक 'जाँवा' की तरह ही हम भी जीवन जीते चले जाते हैं....
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“हिन्दू धर्म मे चरण स्पर्श का वैज्ञानिक
आधार”
हिन्दूधर्म मे अपने से बड़े के अभिवादन के
लिए चरण स्पर्श उत्तम माना गया है ॥
चरण स्पर्श से आपको सामने
वाला व्यक्ति आयु,बल,यश,ज्ञान
का आशीर्वाद देता है॥ आइये इसके
वैज्ञानिक आधार की विवेचना करते हैं॥
वैज्ञानिक न्यूटन के नियम के अनुसार इस
संसार में सभी वस्तुएँ "गुरूत्वाकर्षण" के
नियम से बंधी हैं और गुरूत्व भार सदैव
आकर्षित करने वाले की तरफ जाता है,
हमारे श
रीर में भी यही नियम है। सिर
को उत्तरी ध्रुव और
पैरों को दक्षिणी ध्रुव माना जाता है
अर्थात् गुरूत्व ऊर्जा या चुंबकीय
ऊर्जा या विद्युत चुंबकीय ऊर्जा सदैव
उत्तरी ध्रुव से प्रवेश कर दक्षिणी ध्रुव
की ओर प्रवाहित होकर अपना चक्र
(cycle) पूरा करती है। इसका आशय यह
हुआ कि मनुष्य के शरीर में उत्तरी ध्रुव
(सिर) से सकारात्मक ऊर्जा प्रवेश कर
दक्षिणी ध्रुव (पैरों) की ओर प्रवाहित
होती है और दक्षिणी ध्रुव पर यह
ऊर्जा असीमित मात्रा मे स्थिर
हो जाती है | यहाँ ऊर्जा का केंद्र बन
जाता है, यही कारण है
कि व्यक्ति सैकड़ो मील चलने के पश्चात्
भी मनुष्य भी जड़ नहीं होता वो आगे चलने
की हिम्मत रख सकता है।
ऐसा पैरों में संग्रहित इस ऊर्जा के कारण
ही पाता है। शरीर
क्रिया विज्ञानियों ने यह सिद्ध कर
लिया है कि हाथों और
पैरों की अंगुलियों और अंगूठों के
पोरों (अंतिम सिरा) में यह
ऊर्जा सर्वाधिक रूप से विद्यमान
रहती है तथा यहीं से आपूर्ति और मांग
की प्रक्रिया पूर्ण होती है। पैरों से
हाथों द्वारा इस ऊर्जा के ग्रहण करने
की प्रक्रिया को ही हम "चरण स्पर्श"
करना कहते हैं।
इस प्रकार हिन्दू धर्म मे चरण स्पर्श
की मान्यता पूर्णतया प्रामाणिक और
वैज्ञानिक है।

Tag n Share.

-Aksh...



होली हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली की शाम को होलिका का पूजन किया जाता है। होलिका का पूजन विधि-विधान से करने से अतुल्य पुण्य की प्राप्ति होती है। होली की पूजन विधि इस प्रकार है-

पूजन सामग्री- रोली, कच्चा सूत, चावल, फूल, साबूत हल्दी, मूंग, बताशे, नारियल, बड़कुले (भरभोलिए) आदि।

होलिका पूजन विधि - लकड़ी और कंडों की होली के साथ घास लगाकर होलिका खड़ी करके उसका पूजन करने से पहले हाथ में असद, फूल, सुपारी, पैसा लेकर पूजन कर जल के साथ होलिका के पास छोड़ दें और अक्षत, चंदन, रोली, हल्दी, गुलाल, फूल तथा गूलरी की माला पहनाएं। इसके बाद होलिका की तीन परिक्रमा करते हुए नारियल का गोला, गेहूं की बाली तथा चना को भूंज कर इसका प्रसाद सभी को वितरित करें।

पूजा विधि - एक थाली में सारी पूजन सामग्री लें और साथ में एक पानी का लौटा भी लें। इसके पश्चात होली पूजन के स्थान पर पहुंचकर नीचे लिखे मंत्र का उच्चारण करते हुए स्वयं पर और पूजन सामग्री पर थोड़ा जल छिड़कें-

ऊँ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु,
ऊँ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु,
ऊँ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु।

अब हाथ में पानी, चावल, फूल एवं कुछ दक्षिणा लेकर नीचे लिखें मंत्र का उच्चारण करें- ऊँ विष्णु: विष्णु: विष्णु: श्रीमद्गवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया अद्य दिवसे क्रोधी नाम संवत्सरे संवत् 2069 फाल्गुन मासे शुभे शुक्लपक्षे पूर्णिमायां शुभ तिथि - गौत्र(अपने गौत्र का नाम लें) उत्पन्ना (अपने नाम का उच्चारण करें) मम इह जन्मनि जन्मान्तरे वा सर्वपापक्षयपूर्वक दीर्घायुविपुलधनधान्यं शत्रुपराजय मम् दैहिक दैविक भौतिक त्रिविध ताप निवृत्यर्थं सदभीष्टसिद्धयर्थे प्रह्लादनृसिंहहोली इत्यादीनां पूजनमहं करिष्यामि।

होली पूजन दहन कैसे करें ? पूर्ण चंद्रमा (फाल्गुनपूर्णिमा) के दिन ही प्रारंभ होता है। इस दिन सायंकाल को होली जलाई जाती है। इसके एक माह पूर्व अर्थात् माघ पूर्णिमा को एरंड या गूलर वृक्ष की टहनी को गांव के बाहर किसी स्थान पर गाड़ दिया जाता है, और उस पर लकडि़यां, सूखे उपले, खर-पतवार आदि चारों से एकत्र किया जाता है और फाल्गुन पूर्णिमा की रात या सायंकाल इसे जलाया जाता है। परंपरा के अनुसार सभी लोग अलाव के चारों ओर एकत्रित होते हैं। इसी अलाव को होली कहा जाता है। होली की अग्नि में सूखी पत्तियां, टहनियां, व सूखी लकडि़यां डाली जाती हैं, तथा लोग इसी अग्नि के चारों ओर नृत्य व संगीत का आनन्द लेते हैं।

26 मार्च 2013, भद्र्रा के पुच्छ में रात्रि 11.43 से 12.51 बजे तक अथवा भद्रा (रात्रि 3.40 बजे) नक्षत्र में इस वर्ष की होलिका दहन किया जायेगा प्रदोष व्यापिनी फाल्गुन पूर्णिमा के दिन भ्रद्रारहित काल में होलिका दहन किया जाता हैं। इसलिए होलिका-दहन से पूर्व और भद्रा समय के पश्चात् होली का पूजन किया जाना चाहिए।

होलिका पूजन के समय निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए--

अहकूटा भयत्रस्तै: कृता त्वं होलि बालिशै:
अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम:

इस मंत्र का उच्चारण एक माला, तीन माला या फिर पांच माला विषम संख्या के रुप में करना चाहिए| होलिका पूजन के बाद होलिका दहन- विधिवत रुप से होलिका का पूजन करने के बाद होलिका का दहन किया जाता है।

होलिका में आहुति देने वाली सामग्रियां - होलिका दहन होने के बाद होलिका में जिन वस्तुओं की आहुति दी जाती है, उसमें कच्चे आम, नारियल, भुट्टे या सप्तधान्य, चीनी के बने खिलौने, नई फसल का कुछ भाग है. सप्त धान्य है, गेंहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर।

होलिका दहन की पूजा विधि - होलिका दहन करने से पहले होली की पूजा की जाती है। इस पूजा को करते समय, पूजा करने वाले व्यक्ति को होलिका के पास जाकर पूर्व या उतर दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए. पूजा करने के लिये निम्न सामग्री को प्रयोग करना चाहिए.

एक लोटा जल, माला, रोली, चावल, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल आदि का प्रयोग करना चाहिए. इसके अतिरिक्त नई फसल के धान्यों जैसे- पके चने की बालियां व गेंहूं की बालियां भी सामग्री के रुप में रखी जाती है.

इसके बाद होलिका के पास गोबर से बनी ढाल तथा अन्य खिलौने रख दिये जाते है। होलिका दहन मुहुर्त समय में जल, मोली, फूल, गुलाल तथा गुड आदि से होलिका का पूजन करना चाहिए। गोबर से बनाई गई ढाल व खिलौनों की चार मालाएं अलग से घर लाकर सुरक्षित रख ली जाती है। इसमें से एक माला पितरों के नाम की, दूसरी हनुमान जी के नाम की, तीसरी शीतला माता के नाम की तथा चौथी अपने घर- परिवार के नाम की होती है।

कच्चे सूत को होलिका के चारों और तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटना होता है। फिर लोटे का शुद्ध जल व अन्य पूजन की सभी वस्तुओं को एक-एक करके होलिका को समर्पित किया जाता है। रोली, अक्षत व पुष्प को भी पूजन में प्रयोग किया जाता है. गंध- पुष्प का प्रयोग करते हुए पंचोपचार विधि से होलिका का पूजन किया जाता है। पूजन के बाद जल से अर्धय दिया जाता है.

सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में होलिका में अग्नि प्रच्जवलित कर दी जाती है। इसमें अग्नि प्रच्जवलित होते ही डंडे को बाहर निकाल लिया जाता है। सार्वजनिक होली से अग्नि लाकर घर में बनाई गई होली में अग्नि प्रच्जवलित की जाती है। अंत में सभी पुरुष रोली का टीका लगाते है, तथा महिलाएं गीत गाती है। तथा बड़ों का आशिर्वाद लिया जाता है। सेंक कर लाये गये धान्यों को खाने से निरोगी रहने की मान्यता है।

ऐसा माना जाता है कि होली की बची हुई अग्नि और राख को अगले दिन प्रात: घर में लाने से घर को अशुभ शक्तियों से बचाने में सहयोग मिलता है। तथा इस राख का शरीर पर लेपन भी किया जाता है।

वर्तमान समय में होली के दिन शराब अथवा भंग पीने की कुप्रथा है।

होली मात्र रंग खेलने व लकड़ी के ढ़ेर जलाने त्योहार नहीं है। यह तो चित्त की दुर्बलताओं को दूर करने का, मन की मलिन वासनाओं को जलाने का पवित्र दिन है। अपने दुर्गुणों, व्यस्नों व बुराईओं को जलाने का पर्व है। होली अच्छाईयां ग्रहण करने का पर्व है होली समाज में स्नेह का संदेश फैलाने का पर्व है। हिरण्यकश्यपु रूपी आसुरीवृत्ति तथा होलिका रूपी कपट की पराजय का दिन है होली, यह पवित्र पर्व परमात्मा में दृढ़निष्ठावान के आगे प्रकृति द्वारा अपने नियमों को बदल देने की याद दिलाता है। — 

अमेरिकी यूनिवर्सिटी में गीता पढ़ना हुआ जरूरी

क्या आप सपने मेँ भी सोच सकते हैँ कि भारत मेँ कभी ऐसा हो सकता है ?

अमेरिका की सेटन हॉल यूनिवर्सिटी में सभी छात्रों के लिए गीता पढ़ना अनिवार्य कर दिया गया है। इस यूनिवर्सिटी का मानना है कि छात्रों को सामाजिक सरोकारों से रूबरू कराने के लिए गीता से बेहतर कोई और माध्यम नहीं हो सकता है।
लिहाजा उसने सभी विषयों के छात्रों के लिए अनिवार्य पाठ्यक्रम के तहत इसकी स्टडी को जरूरी बना दिया है।
यूनिवर्सिटी के स्टिलमेन बिजनस स्कूल के प्रफेसर ए.डी. अमर ने यह जानकारी दी।

यह यूनिवर्सिटी 1856 में न्यू जर्सी में स्थापित हुई थी और एक स्वायत्त कैथलिक यूनिवर्सिटी है।

यूनिवर्सिटी के 10, 800 छात्रों में से एक तिहाई से ज्यादा गैर ईसाई हैं। इनमें भारतीय छात्रों की संख्या अच्छी-खासी है।
गीता की स्टडी अनिवार्य बनाने इस फैसले के पीछे प्रफेसर अमर की प्रमुख भूमिका रही। उन्होंने कहा कि यूनिवर्सिटी में कोर कोर्स के तहत सभी छात्रों के लिए अनिवार्य पाठ्यक्रम होता है,
जिसकी स्टडी सभी विषयों के छात्रों को करनी होती है।
2001 में यूनिवर्सिटी ने अलग पहचान कायम करने के लिए कोर कोर्स की शुरुआत की थी।
इसमें छात्रों को सामाजिक सरोकारों और जिम्मेदारियों से रूबरू कराया जाता है।
अमर ने बताया कि इस मामले में गीता का ज्ञान सर्वोत्तम साधन है। गीता की अहमियत को समझते हुए यूनिवर्सिटी ने इसकी स्टडी अनिवार्य
की।

ॐ...जय श्री राम.....ॐ

Saturday, March 30, 2013


The Result of Cow SLAUGHTERING is coming now..

When u Come to knw about RESULT of gauhatya...
Gona cry for that...
In just 7 year...2005 to 2012 almot 2,90,000 farmer sucide in india..
Just bcoz of their chemical fartilizer spoiled there land...nd posinus the ground water...
85% gau ki to hatya kr di gau hindo k desh m...
Esa kya hua inn 20year m ki farmers ne sucide kr li..?? Aaj se hajaro year tak gaumaa k gobar ka use lete the...wake up

Agr ab bi nai gauseva ko age aye to bas ane wale 5year m na to khane ko anaz milega na pine ko dudh....soch lo bhaiyo


हमारे जो भी मित्र RSS जैसी देशभक्त sanstha का हिस्सा बनना चाहते हैं... उनके लिए भारत के बड़े शहरों के फ़ोन नंबर दे रहे हैं... ज्वाइन करें और देश के निर्माण में योगदान दें...

new delhi
011-23679996,
011-23670365

Amer (rajsthan)
- 0141- 2375496 ,
0141-2376262

Lucknow
0522-2693972 ,
0522-2693973

Nagpur
0712-2723003 , 0712-
2320150

Bhopal
0755 - 2421055,
0755-2410004

chennai
044-28360243 ,
044-28361049

Calcutta
033-23508075 ,
033-23500573

mumbai
022-24947224 ,
022-24947330

Ahmedabad
079-25433131,079-25322255

Banglore
080-26610081,080-26610760

Patna
0612-2903932 ,
0612-2662037

Thane(Maharastra)
amit sapre 9869455642

mumbai to pune : prfull nikam 9320485430
 — withSandeep Sharma and Rajnish Mittal.





(*सनातन धर्म*)

देवता भी गो पूजा करते हैं । गाय में सब देवताओं का दिव्यत्व है । एक धर्मपूर्ण दिन का आरंभ उसकी पूजा से होता है । विभिन्न धार्मिक त्योहारों में उसकी प्रमुखता है । विशेषतः संक्रांति और दीपावली गाय से जुड़े उत्सव हैं । विभिन्न अनुष्ठानों में गव्य उत्पाद आवश्यक हैं । इस प्रकार गाय हमारे जीवन का अभिन्न अंग है ।

*वेद पुराणों में गाय*
यः पौरुषेण क्रविषा समंक्ते यो अश्वेन पशुना यातुधानः ।

ये अघ्न्याये भरति क्षीरमग्ने तेषां शीर्षाणि हरसापि वृश्चः ॥

हे अग्निदेव ! अपनी लपटों से उन दानवों के सर जला दो, जो मनुष्यों और घोड़े और गाय जैसे प्राणियों का मांस भक्षण करते और गाय का दूध चूसते हैं । (रिक संहिता ८७-१६१)

*प्रजापतिर्मह्यमेता रराणो विश्वैर्देवैः पितृभिः संविदानः ।

शिवाः सतीरुप नो गोष्ठमाकस्तासां वयं प्रजया संसदेम ॥

हे परमेश्वर, अन्य सब देवताओं के साथ हमारी खुशी के लिये शुभ और विशाल गो स्थान बनाकर उन्हें गाय और बछड़ों से भर दें । हम गो धन का आनंद लें और गायों की सेवा करें । (रिक संहिता १० – १६९-४)

*सा विश्वाय़ूः सा विश्वकर्मा सा विश्वधायाः।

गायें यज्ञों में रत सभी ऋषियों और यज्ञों के आयोजकों के आयुष्य को बढ़ायें । गाय यज्ञ के सभी संस्कारों का समन्वय करती है । अपने दूध के नैवेद्य से गाय यज्ञ के सभी देवताओं को संतुष्ट करती है । (शुक्ल यजुर्वेद १-४)

*आ गावो अग्मन्नुत भद्रकम्रन् सीदंतु गोष्मेरणयंत्वस्मे ।

प्रजावतीः पुरुरूपा इहस्स्युरिंद्राय पूर्वीरुष्सोदुहानाः ॥

यूयं गावो मे दयथा कृशं चिदश्रीरं चित्कृणुथा सुप्रतीकम् ।

भद्र गृहं कृणुथ भद्रवाचो बृहद्वो वय उच्यते सभासु ॥

गो माताओं ! तुम अपने दूध और घी से दुर्बलों को बलिष्ठ बनाती हो और रोगियों को स्वस्थ । अपनी पवित्र वाणी से तुम हमारे घरों को शुद्ध करती हो । सभाओं में तुम्हारा गुणगान होता है । (अथर्ववेद ४-२१-११ और ६)

*वशां देवा उपजीवंति वशां मनुष्या उप ।

वशेदं सर्वं भवतु यावतु सूर्यो विपश्यति ॥

देवता और मानव गो पदार्थों पर जीतें हैं । जब तक सूर्य चमकेगा, विश्व में गायें रहेंगी । सारा ब्रह्मांड गाय के संबल पर निर्भर है । (अथर्ववेद १०-१०-३४)

*सा नो मंद्रेषमूर्जम् दुहाना ।

धेनुर्वा गस्मानुष सुष्टुतैतु ॥

वह है कामधेनु – हमारी आवश्यकताओं को पूर्ण करने वाली दिव्य गाय । उसका मुख स्त्री और शरीर गाय का है । जब सागर मंथन हुआ तो वह अमृत के पूर्व निकली । उसके केशों से सुगंध फैलता है । अपने थनों से वह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की वृद्धि करती है । वह आत्म ज्ञान का घर है और सूर्य, चंद्र और अग्निदेव को शरण देती है । सब देवता और प्राणी उस पर निर्भर करते हैं । तनिक सी प्रार्थना पर वह हमें भोजन और परम ज्ञान देती है । वह हमारे निकट ही रहे ।

*पीतोदका जग्धतृणा दुग्धदेहा निरिंद्रियाः ।

आनंदा नाम तेलोकस्तान् स गच्चति ता ददत् ॥

इन गायों ने घास और जल का आहार लिया है । इन्हें दूहा गया है । वें अब प्रजनन आयु को पार कर चुकी हैं । इन गायों का त्याग करने वाला आनंदविहीन अंधेरे स्थल को प्राप्त होगा । इनके स्थान पर मुझे दान कर दो । (कठोपनिषद – विश्वजित यज्ञ के अवसर पर नचिकेता ऋषि ने वाजश्रवों से कहा)

*गोकुलस्य तृषार्तस्य जलार्थे वसुधाधिपः ।

उत्पादयति यो विघ्नं तं विद्याद्ब्रह्मघातिनम् ॥

प्यासी गायों को पानी देने में बाधा डालने को ब्रह्महत्या के समान मानना चाहिए । (महाभारत अनुशासन पर्व-२४-७)

*गवां मूत्रपुरीषस्य नोद्विजेत कथंचन ।

न चासां मांसमश्नीयाद्गवां पुष्टिं तथाप्नुयात् ॥

गोमूत्र और गोबर का सेवन करने में न हिच-किचायिये । ये पवित्र हैं । किंतु गोमांस का भक्षण कभी न करें । पंचगव्य सेवन से व्यक्ति बलिष्ठ बनता है । (महाभारत अनुशासन पर्व ७८-१७)

*गावो ममाग्रतो नित्यं गावः पृष्ठत एव च ।

गावो मे सर्वतश्चैव गवां मध्ये वसाह्यहम् ॥

मेरे सामनें, मेरे पीछे और मेरे चारों तरफ गायें हों । मैं गायों के साथ जीता हूँ । (महाभारत, अनुशासन पर्व ८०-३)

*दानानामपि सर्वेषां गवां दानं प्रशस्यते ।

गावः श्रेष्ठाः पवित्राश्च पावनं ह्येतदुत्तमम् ॥

गोदान अन्य दानों से श्रेष्ठ है । गायें सर्वोच्च और पवित्र हैं । (महाभारत, अनुशासन पर्व ८३-३)

*सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनंदनः ।

पार्थो वत्सः सुधीर्भोक्तादुग्धं गीतामृतः महत् ॥

भगवद्गीता उपनिषदों का सार है । यह श्री कृष्ण द्वारा दूही जानेवाली गाय के समान है । अर्जुन बछड़े जैसा है । विद्वान भक्त भगवद्गीता का दुग्ध पान कर रहें हैं ।

*गौर्मे माता वृषभः पिता मे दिवं शर्म जगते मे प्रतिष्ठा ।

गाय मेरी माता और बैल पिता है । यह युगल मुझे इस संसार और स्वर्ग दोनों में आनंद का आशीर्वाद दे । मैं अपने जीवन के लिये गाय पर निर्भर हूँ, यह करते हुए गाय को समर्पित हों ।

*गावो बंधुर्मनुष्याणां मनुष्याबांधवा गवाम् ।

गौः यस्मिन् गृहेनास्ति तद्बंधुरहितं गृहम् ॥

गायों में लक्ष्मी का निवास है । वे पापों से मुक्त हैं । मानव और गाय का संबंध अति सुंदर है । गौविहीन घर प्रियजनविहीन के समान है । (पद्मपुराण)

*वागिंद्रियस्वरूपायै नमः ।

वाचावृत्तिप्रद्दयिन्यै नमः ॥

अकारादिक्षकारांतवैखरीवक्स्वरूपिण्य़ै नमः ॥

गो पदार्थों के उपयोग के माध्यम से गो सेवा, चेतना और साहस दोनों को बढ़ाती है । (अत्रि संहिता ३१०)

*यन्न वेद्ध्वनिध्यांतं न च गोभिरलंकृतम् ।

यन्नबालैः परिवृतं श्मशानमिव तद्गृहम् ॥

वह घर श्मशान के समान है जहाँ वेदों का पाठ नहीं होता और जहाँ गायें और बालक नहीं दिखते । (विष्णु स्मृति)

*गोमूत्रगोमयं सर्पि क्षीरं दधि च रोचना ।

षदंगमेतत् परमं मांगल्यं सर्वदा गवाम् ॥

गोमूत्र, गोबर, दूध, घी, दहीं और गोरोचन – यह ६ अत्यंत पवित्र पदार्थ हैं ।


ये बजरंगबली का वृद्ध रूप है इस मंदिरको रोकडिया हनुमान जी का मंदिर कहते है

ये बजरंगबली का वृद्ध रूप है इस मंदिरको रोकडिया हनुमान जी का मंदिर कहते है



दुनिया का बन  कर देख लिया,  राम का बनकर देखो "



जय श्री राम 
जय जय हनुमान 





Thursday, March 28, 2013

कुछ लोग कहते है कि हमारे धर्मग्रंथ अब प्रासंगिक नही रहे।
आइये असलियत का निरिक्षण करे।

आईये महाभारत से सीखे:-


एक बार कौरवो पर बाहरी आक्रमण हुआ।धर्मराज युधिष्टिर को पता चला तो सेना लेकर गये और उनकी मदद की।अर्जुन के आश्चर्य जताने पर धर्मराज बोले:अर्जुन!हम आपस मे भले ही सौ और पाँच अलग अलग हो पर बाहरी लोगो के लिये हम एक सौ पाँच है।
शिक्षा:हिंदु आपस मे भले ही झगड लो पर धर्मयुद्ध मे पूरे 100 करोड होने चाहिये

Monday, March 25, 2013

होली आला रे




|| श्रीहरिः ||

होली आला रे .....

होली का एक नाम ‘वासन्ती नवशस्येष्टि |’ इसका अर्थ ‘वसन्तमें पैदा होने वाले नए धानका ‘यज्ञ’ होता है, यह यज्ञ फाल्गुन शुक्ल १५ को किया जाता है | इसका प्रचार भी शायद इसी लिए हुआ हो की ऋतु-परिवर्तन के प्राक्रतिक विकार यज्ञ के धुएं से नष्ट होकर गाँव-गाँव और नगर-नगर में एक साथ ही वायु की शुद्धि हो जाए | यज्ञ से बहुत से लाभ होते है | पर यज्ञधूम से वायुकी शुद्धि होना तो प्राय: सभी को मान्य है अथवा नया धान किसी देवता को अर्पण किये बिना नहीं खाना चाहिये, इसी शास्त्रोक्त हेतु को प्रत्यक्ष दिखलाने के लिए सारी जातिने एक दिन ऐसा रखा है जिस दिन देवताओं के लिए देश भर में धन से यज्ञ किया जाये | आजकल भी होलीके दिन जिस जगह काठ-कंडे इक्कठे करके उसमे आग लगायी जाती है, उस जगह को पहले साफ़ करते और पूजते है और सभी ग्रामवासी उसमे कुछ-न-कुछ होमते है, यह शायद उसी ‘नवशस्येष्टि’ का बिगड़ा हुआ रूप हो | सामुदायिक यज्ञ होनेसे अब भी सभी लोग उसके लिए पहले से होम की सामग्री घर-घरमें बनाने और आसानी से वहाँतक ले जाने के लिए माला गूँथकर रखते है |

इसके अतिरिक्त यह त्यौहारके साथ ऐतिहासिक, परमार्थिक और राष्ट्रीय तत्वों का भी सम्बन्ध मालूम होता है |

—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!

देश धर्म का नाता है गो हमारी माता है.




गो माता को बचाओ
देश बचऔ

































Save Holy Cow
Save Planet

शास्त्रों के अनुसार गौसेवा के पुण्य का प्रभाव कई जन्मों तक बना रहता है


शास्त्रों के अनुसार गौसेवा के पुण्य का प्रभाव कई जन्मों तक बना रहता है।


 इसीलिए गाय की सेवा करने की बात कही जाती है। पुराने समय से ही गौ सेवा को धर्म के साथ ही जोड़ा गया है।


गौ सेवा भी धर्म का ही अंग है। गाय को हमारी माता बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि गाय में हमारे सभी देवी-देवता निवास करते हैं। इसी वजह से मात्र गाय की सेवा से ही भगवान प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए प्रतिदिन हमें गाय को कम से कम एक रोटी अवश्य खिलानी चाहिए।


भगवान श्रीकृष्ण के साथ ही गौ माता की भी पूजा की जाती है। भागवत में श्रीकृष्ण ने भी इंद्र पूजा बंद करवाकर गौ माता की पूजा प्रारंभ करवाई है। इसी बात से स्पष्ट होता है कि गाय की सेवा कितना पुण्य का अर्जित करवाती है। गाय के धार्मिक महत्व को ध्यान में रखते हुए कई घरों में यह परंपरा होती है कि जब भी खाना बनता है पहली रोटी गाय को खिलाई जाती है। यह पुण्य कर्म बिल्कुल वैसा हीजैसे भगवान को भोग लगाना। गाय को पहली रोटी खिला देने से सभी देवी-देवताओं को भोग लग जाता है।


लेकिन समस्त मनुष्यों के लिए सुख-शांति के भण्डार एवं समस्त फल दायिनी गौ माता का वर्तमान में घोर तिरस्कार हो रहा है। बड़े दुख की बात है गोपाल के देश में आज निर्बाध गो-वध जारी है और गो रक्त से भारत की पवित्र भूमि लाल हो रही है।

शिव हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से हैं ।

 वेद में इनका नाम रुद्र है। यह व्यक्ति की चेतना के अन्तर्यामी हैं। इनकी अर्धाङ्गिनी (शक्ति) का नाम पार्वती है। इनके पुत्र स्कन्द और गणेश हैं।शिव अधिक्तर चित्रों में योगी के रूप में देखेजाते हैं और उनकी पूजा लिंग के रूप में की जाती है । भगवान शिव को संहार का देवता कहा जाता है ।भगवान शिव सौम्य आकृति एवं रौद्ररूप दोनों के लिए विख्यात हैं। अन्य देवों से शिव को भिन्न माना गया है। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं। त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने गए हैं। शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदिस्रोत हैं और यह काल महाकाल ही ज्योतिषशास्त्र के आधार हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं।

शिव के मस्तक पर एक ओर चंद्र है, तो दूसरी ओर महाविषधर सर्प भी उनके गले का हार है। वे अर्धनारीश्वर होते हुए भी कामजित हैं। गृहस्थ होते हुए भी श्मशानवासी, वीतरागी हैं। सौम्य, आशुतोष होते हुए भी भयंकर रुद्र हैं। शिव परिवार भी इससे अछूता नहीं हैं। उनके परिवार में भूत-प्रेत, नंदी, सिंह, सर्प, मयूर व मूषक सभी का समभाव देखने को मिलता है। वे स्वयं द्वंद्वों से रहित सह-अस्तित्व के महान विचार का परिचायक हैं। ऐसे महाकाल शिव की आराधना का महापर्व है शिवरात्रि।शिवरात्रि व्रत की पारणा चतुर्दशी में ही करनी चाहिए। जो चतुर्दशी में पारणा करता है, वह समस्त तीर्थो के स्नान का फल प्राप्त करता है। जो मनुष्य शिवरात्रि का उपवास नहीं करता, वह जन्म-मरण के चक्र में घूमता रहता है। शिवरात्रि का व्रत करने वाले इस लोक के समस्त भोगों को भोगकर अंत में शिवलोक में जाते हैं।

ध्यान रहे शिव को पढना नही , केवल समझना नही अपितु जीना हैं शिव दीप की ज्योति अपने आप मैं प्रज्वलित करना ही शिव को जीना कहलाता हैं



चाहे कुछ भी भगवान हमेशा आपको आप के लायक देता है

इश्वर आप की हर तरीके से मदद करता है
एक गरीब ब्रह्मण था . उसको अपनीं कन्या का विवाह करना था . उसने विचार किया कि कथा करने से कुछ पैसा आजायेगा तो काम चल जाये गा . ऐसा विचार करके उसने भगवन राम के एक मंदिर में बैठ कर कथा अर्रम्भ कर दी . उसका भाव यह था कि कोई श्रोता आये, चाहे न आये पर भगवन तो मेरी कथा सुनेंगे !
पंडित जी कथा में थोड़े से श्रोता आने लगे एक बहुत कंजूस सेठ था. एक दिन वह मंदिर में आया. जब वह मंदिर कि परोकरम कर रहा था, तब भीतर से कुछ आवाज आई. ऐसा लगा कि दो व्यक्ति आपस में बात कर रहे हैं. सेठ ने कान लगा कर सुना. भगवन राम हनुमान जी से कह रहे थे कि इस गरीब ब्रह्मण के लिए सौ रूपए का कर देना, जिससे कन्यादान ठीक हो जाये.हनुमान जी ने कहा ठीक है महाराज !इसके सौ रूपए पैदा हो जायेंगे. सेठ ने यह सुना तो वह कथा समाप्ति के बाद पंडित जी से मिले और उनसे कहा कि महाराज !कथा में रूपए पैदा हो रहें कि नहीं ?पंडित जी बोले श्रोता बहुत कम आतें हैं तो रूपए कैसे पैदा हों. सेठ ने कहा कि मेरी एक शर्त है कथा में जितना पैसा आये वह मेरे को दे देना और मैं आप को पचास रूपए दे दूंगा. पंडित जी ने सोचा कि उसके पास कौन से इतने पैसे आतें हैं पचास रूपए तो मिलेंगे, पंडित जी ने सेठ कि बात मान ली उन दिनों पचास रूपए बहुत सा धन होता था . इधर सेठ कि नीयत थी कि भगवान् कि आज्ञा का पालन करने हेतु हनुमान जी सौ रूपए पंडित जी को जरूर देंगे. मुझे सीधे सीधे पचास रूपए का फैयदा हो रहा है. जो लोभी आदमी होते हैं वे पैसे के बारे में ही सोचते हैं. सेठ ने भगवान् जी कि बातें सुनकर भी भक्ति कि और ध्यान नहीं दिया बल्कि पैसे कि और आकर्षित हो गए.
अब सेठ जी कथा के उपरांत पंडित जी के पास गए और उनसे कहने लगे कि कितना रुपया आया है , सेठ के मन विचार था कि हनुमान जी सौ रूपए तो भेंट में जरूर दिलवाएंगे , मगर पंडित जी नहा कहा कि पञ्च सात रूपए ही आयें हैं. अब सेठ को शर्त के मुताबिक पचास रूपए पंडित जी को देने पड़े. सेठ को हनुमान जी पर बहुत ही गुस्सा आ रहा था कि उन्हों ने पंडित जी को सौ रूपए नहीं दिए ! वह मंदिर में गया और हनुमान जी कि मूर्ती पर घूँसा मारा. घूँसा मरते ही सेठ का हाथ मूर्ती पर चिपक गया अब सेठ जोर लगाये अपना हाथ छुड़ाने के लिए पर नाकाम रहा हाथ हनुमान जी कि पकड़ में ही रहा . हनुमान जी किसी को पकड़ लें तो वह कैसे छूट सकता है. सेठ को फिर आवाज सुनाई दी. उसने धयान से सुना, भगवन हनुमान जी सेपूछ रहे थे कि तुमने ब्रह्मण को सौ रूपए दिलाये कि नहीं ? हनुमान जी ने कहा 'महाराज पचास रूपए तो दिला दिए हैं, बाकी पचास रुपयों के लिए सेठ को पकड़ रखा है ! वह पचास रूपए दे देगा तो छोड़ देंगे'
सेठ ने सुना तो विचार किया कि मंदिर में लोग आकर मेरे को देखें गे तो बड़ी बेईज्ज़ती हो गी ! वह चिल्लाकर बोला 'हनुमान जी महाराज ! मेरे को छोड़ दो, मैं पचास रूपय दे दूं गा !' हनुमान जी ने सेठ को छोड़ दिया! सेठ ने जाकर पंडित जी को पचास रूपए दे दिए.

Wednesday, March 20, 2013

क्या हम इतने अधर्मी है



देखिये ये है हाँलैंड की मुद्रा जिसपे भगवान राम
जी का फोटो है !!
क्या आप भारत जैसे हिन्दू बहुल राष्ट में इस
तरह की मुद्रा सोच भी सकते हो???
अगर सोच भी लिया तो आप
आतंकवादी बना दिये जाओगे
#नमो लाओ देश बचाओ 


जय श्री राम