(*सनातन धर्म*)
देवता भी गो पूजा करते हैं । गाय में सब देवताओं का दिव्यत्व है । एक धर्मपूर्ण दिन का आरंभ उसकी पूजा से होता है । विभिन्न धार्मिक त्योहारों में उसकी प्रमुखता है । विशेषतः संक्रांति और दीपावली गाय से जुड़े उत्सव हैं । विभिन्न अनुष्ठानों में गव्य उत्पाद आवश्यक हैं । इस प्रकार गाय हमारे जीवन का अभिन्न अंग है ।
*वेद पुराणों में गाय*
यः पौरुषेण क्रविषा समंक्ते यो अश्वेन पशुना यातुधानः ।
ये अघ्न्याये भरति क्षीरमग्ने तेषां शीर्षाणि हरसापि वृश्चः ॥
हे अग्निदेव ! अपनी लपटों से उन दानवों के सर जला दो, जो मनुष्यों और घोड़े और गाय जैसे प्राणियों का मांस भक्षण करते और गाय का दूध चूसते हैं । (रिक संहिता ८७-१६१)
*प्रजापतिर्मह्यमेता रराणो विश्वैर्देवैः पितृभिः संविदानः ।
शिवाः सतीरुप नो गोष्ठमाकस्तासां वयं प्रजया संसदेम ॥
हे परमेश्वर, अन्य सब देवताओं के साथ हमारी खुशी के लिये शुभ और विशाल गो स्थान बनाकर उन्हें गाय और बछड़ों से भर दें । हम गो धन का आनंद लें और गायों की सेवा करें । (रिक संहिता १० – १६९-४)
*सा विश्वाय़ूः सा विश्वकर्मा सा विश्वधायाः।
गायें यज्ञों में रत सभी ऋषियों और यज्ञों के आयोजकों के आयुष्य को बढ़ायें । गाय यज्ञ के सभी संस्कारों का समन्वय करती है । अपने दूध के नैवेद्य से गाय यज्ञ के सभी देवताओं को संतुष्ट करती है । (शुक्ल यजुर्वेद १-४)
*आ गावो अग्मन्नुत भद्रकम्रन् सीदंतु गोष्मेरणयंत्वस्मे ।
प्रजावतीः पुरुरूपा इहस्स्युरिंद्राय पूर्वीरुष्सोदुहानाः ॥
यूयं गावो मे दयथा कृशं चिदश्रीरं चित्कृणुथा सुप्रतीकम् ।
भद्र गृहं कृणुथ भद्रवाचो बृहद्वो वय उच्यते सभासु ॥
गो माताओं ! तुम अपने दूध और घी से दुर्बलों को बलिष्ठ बनाती हो और रोगियों को स्वस्थ । अपनी पवित्र वाणी से तुम हमारे घरों को शुद्ध करती हो । सभाओं में तुम्हारा गुणगान होता है । (अथर्ववेद ४-२१-११ और ६)
*वशां देवा उपजीवंति वशां मनुष्या उप ।
वशेदं सर्वं भवतु यावतु सूर्यो विपश्यति ॥
देवता और मानव गो पदार्थों पर जीतें हैं । जब तक सूर्य चमकेगा, विश्व में गायें रहेंगी । सारा ब्रह्मांड गाय के संबल पर निर्भर है । (अथर्ववेद १०-१०-३४)
*सा नो मंद्रेषमूर्जम् दुहाना ।
धेनुर्वा गस्मानुष सुष्टुतैतु ॥
वह है कामधेनु – हमारी आवश्यकताओं को पूर्ण करने वाली दिव्य गाय । उसका मुख स्त्री और शरीर गाय का है । जब सागर मंथन हुआ तो वह अमृत के पूर्व निकली । उसके केशों से सुगंध फैलता है । अपने थनों से वह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की वृद्धि करती है । वह आत्म ज्ञान का घर है और सूर्य, चंद्र और अग्निदेव को शरण देती है । सब देवता और प्राणी उस पर निर्भर करते हैं । तनिक सी प्रार्थना पर वह हमें भोजन और परम ज्ञान देती है । वह हमारे निकट ही रहे ।
*पीतोदका जग्धतृणा दुग्धदेहा निरिंद्रियाः ।
आनंदा नाम तेलोकस्तान् स गच्चति ता ददत् ॥
इन गायों ने घास और जल का आहार लिया है । इन्हें दूहा गया है । वें अब प्रजनन आयु को पार कर चुकी हैं । इन गायों का त्याग करने वाला आनंदविहीन अंधेरे स्थल को प्राप्त होगा । इनके स्थान पर मुझे दान कर दो । (कठोपनिषद – विश्वजित यज्ञ के अवसर पर नचिकेता ऋषि ने वाजश्रवों से कहा)
*गोकुलस्य तृषार्तस्य जलार्थे वसुधाधिपः ।
उत्पादयति यो विघ्नं तं विद्याद्ब्रह्मघातिनम् ॥
प्यासी गायों को पानी देने में बाधा डालने को ब्रह्महत्या के समान मानना चाहिए । (महाभारत अनुशासन पर्व-२४-७)
*गवां मूत्रपुरीषस्य नोद्विजेत कथंचन ।
न चासां मांसमश्नीयाद्गवां पुष्टिं तथाप्नुयात् ॥
गोमूत्र और गोबर का सेवन करने में न हिच-किचायिये । ये पवित्र हैं । किंतु गोमांस का भक्षण कभी न करें । पंचगव्य सेवन से व्यक्ति बलिष्ठ बनता है । (महाभारत अनुशासन पर्व ७८-१७)
*गावो ममाग्रतो नित्यं गावः पृष्ठत एव च ।
गावो मे सर्वतश्चैव गवां मध्ये वसाह्यहम् ॥
मेरे सामनें, मेरे पीछे और मेरे चारों तरफ गायें हों । मैं गायों के साथ जीता हूँ । (महाभारत, अनुशासन पर्व ८०-३)
*दानानामपि सर्वेषां गवां दानं प्रशस्यते ।
गावः श्रेष्ठाः पवित्राश्च पावनं ह्येतदुत्तमम् ॥
गोदान अन्य दानों से श्रेष्ठ है । गायें सर्वोच्च और पवित्र हैं । (महाभारत, अनुशासन पर्व ८३-३)
*सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनंदनः ।
पार्थो वत्सः सुधीर्भोक्तादुग्धं गीतामृतः महत् ॥
भगवद्गीता उपनिषदों का सार है । यह श्री कृष्ण द्वारा दूही जानेवाली गाय के समान है । अर्जुन बछड़े जैसा है । विद्वान भक्त भगवद्गीता का दुग्ध पान कर रहें हैं ।
*गौर्मे माता वृषभः पिता मे दिवं शर्म जगते मे प्रतिष्ठा ।
गाय मेरी माता और बैल पिता है । यह युगल मुझे इस संसार और स्वर्ग दोनों में आनंद का आशीर्वाद दे । मैं अपने जीवन के लिये गाय पर निर्भर हूँ, यह करते हुए गाय को समर्पित हों ।
*गावो बंधुर्मनुष्याणां मनुष्याबांधवा गवाम् ।
गौः यस्मिन् गृहेनास्ति तद्बंधुरहितं गृहम् ॥
गायों में लक्ष्मी का निवास है । वे पापों से मुक्त हैं । मानव और गाय का संबंध अति सुंदर है । गौविहीन घर प्रियजनविहीन के समान है । (पद्मपुराण)
*वागिंद्रियस्वरूपायै नमः ।
वाचावृत्तिप्रद्दयिन्यै नमः ॥
अकारादिक्षकारांतवैखरीवक्स् वरूपिण्य़ै नमः ॥
गो पदार्थों के उपयोग के माध्यम से गो सेवा, चेतना और साहस दोनों को बढ़ाती है । (अत्रि संहिता ३१०)
*यन्न वेद्ध्वनिध्यांतं न च गोभिरलंकृतम् ।
यन्नबालैः परिवृतं श्मशानमिव तद्गृहम् ॥
वह घर श्मशान के समान है जहाँ वेदों का पाठ नहीं होता और जहाँ गायें और बालक नहीं दिखते । (विष्णु स्मृति)
*गोमूत्रगोमयं सर्पि क्षीरं दधि च रोचना ।
षदंगमेतत् परमं मांगल्यं सर्वदा गवाम् ॥
गोमूत्र, गोबर, दूध, घी, दहीं और गोरोचन – यह ६ अत्यंत पवित्र पदार्थ हैं ।
देवता भी गो पूजा करते हैं । गाय में सब देवताओं का दिव्यत्व है । एक धर्मपूर्ण दिन का आरंभ उसकी पूजा से होता है । विभिन्न धार्मिक त्योहारों में उसकी प्रमुखता है । विशेषतः संक्रांति और दीपावली गाय से जुड़े उत्सव हैं । विभिन्न अनुष्ठानों में गव्य उत्पाद आवश्यक हैं । इस प्रकार गाय हमारे जीवन का अभिन्न अंग है ।
*वेद पुराणों में गाय*
यः पौरुषेण क्रविषा समंक्ते यो अश्वेन पशुना यातुधानः ।
ये अघ्न्याये भरति क्षीरमग्ने तेषां शीर्षाणि हरसापि वृश्चः ॥
हे अग्निदेव ! अपनी लपटों से उन दानवों के सर जला दो, जो मनुष्यों और घोड़े और गाय जैसे प्राणियों का मांस भक्षण करते और गाय का दूध चूसते हैं । (रिक संहिता ८७-१६१)
*प्रजापतिर्मह्यमेता रराणो विश्वैर्देवैः पितृभिः संविदानः ।
शिवाः सतीरुप नो गोष्ठमाकस्तासां वयं प्रजया संसदेम ॥
हे परमेश्वर, अन्य सब देवताओं के साथ हमारी खुशी के लिये शुभ और विशाल गो स्थान बनाकर उन्हें गाय और बछड़ों से भर दें । हम गो धन का आनंद लें और गायों की सेवा करें । (रिक संहिता १० – १६९-४)
*सा विश्वाय़ूः सा विश्वकर्मा सा विश्वधायाः।
गायें यज्ञों में रत सभी ऋषियों और यज्ञों के आयोजकों के आयुष्य को बढ़ायें । गाय यज्ञ के सभी संस्कारों का समन्वय करती है । अपने दूध के नैवेद्य से गाय यज्ञ के सभी देवताओं को संतुष्ट करती है । (शुक्ल यजुर्वेद १-४)
*आ गावो अग्मन्नुत भद्रकम्रन् सीदंतु गोष्मेरणयंत्वस्मे ।
प्रजावतीः पुरुरूपा इहस्स्युरिंद्राय पूर्वीरुष्सोदुहानाः ॥
यूयं गावो मे दयथा कृशं चिदश्रीरं चित्कृणुथा सुप्रतीकम् ।
भद्र गृहं कृणुथ भद्रवाचो बृहद्वो वय उच्यते सभासु ॥
गो माताओं ! तुम अपने दूध और घी से दुर्बलों को बलिष्ठ बनाती हो और रोगियों को स्वस्थ । अपनी पवित्र वाणी से तुम हमारे घरों को शुद्ध करती हो । सभाओं में तुम्हारा गुणगान होता है । (अथर्ववेद ४-२१-११ और ६)
*वशां देवा उपजीवंति वशां मनुष्या उप ।
वशेदं सर्वं भवतु यावतु सूर्यो विपश्यति ॥
देवता और मानव गो पदार्थों पर जीतें हैं । जब तक सूर्य चमकेगा, विश्व में गायें रहेंगी । सारा ब्रह्मांड गाय के संबल पर निर्भर है । (अथर्ववेद १०-१०-३४)
*सा नो मंद्रेषमूर्जम् दुहाना ।
धेनुर्वा गस्मानुष सुष्टुतैतु ॥
वह है कामधेनु – हमारी आवश्यकताओं को पूर्ण करने वाली दिव्य गाय । उसका मुख स्त्री और शरीर गाय का है । जब सागर मंथन हुआ तो वह अमृत के पूर्व निकली । उसके केशों से सुगंध फैलता है । अपने थनों से वह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की वृद्धि करती है । वह आत्म ज्ञान का घर है और सूर्य, चंद्र और अग्निदेव को शरण देती है । सब देवता और प्राणी उस पर निर्भर करते हैं । तनिक सी प्रार्थना पर वह हमें भोजन और परम ज्ञान देती है । वह हमारे निकट ही रहे ।
*पीतोदका जग्धतृणा दुग्धदेहा निरिंद्रियाः ।
आनंदा नाम तेलोकस्तान् स गच्चति ता ददत् ॥
इन गायों ने घास और जल का आहार लिया है । इन्हें दूहा गया है । वें अब प्रजनन आयु को पार कर चुकी हैं । इन गायों का त्याग करने वाला आनंदविहीन अंधेरे स्थल को प्राप्त होगा । इनके स्थान पर मुझे दान कर दो । (कठोपनिषद – विश्वजित यज्ञ के अवसर पर नचिकेता ऋषि ने वाजश्रवों से कहा)
*गोकुलस्य तृषार्तस्य जलार्थे वसुधाधिपः ।
उत्पादयति यो विघ्नं तं विद्याद्ब्रह्मघातिनम् ॥
प्यासी गायों को पानी देने में बाधा डालने को ब्रह्महत्या के समान मानना चाहिए । (महाभारत अनुशासन पर्व-२४-७)
*गवां मूत्रपुरीषस्य नोद्विजेत कथंचन ।
न चासां मांसमश्नीयाद्गवां पुष्टिं तथाप्नुयात् ॥
गोमूत्र और गोबर का सेवन करने में न हिच-किचायिये । ये पवित्र हैं । किंतु गोमांस का भक्षण कभी न करें । पंचगव्य सेवन से व्यक्ति बलिष्ठ बनता है । (महाभारत अनुशासन पर्व ७८-१७)
*गावो ममाग्रतो नित्यं गावः पृष्ठत एव च ।
गावो मे सर्वतश्चैव गवां मध्ये वसाह्यहम् ॥
मेरे सामनें, मेरे पीछे और मेरे चारों तरफ गायें हों । मैं गायों के साथ जीता हूँ । (महाभारत, अनुशासन पर्व ८०-३)
*दानानामपि सर्वेषां गवां दानं प्रशस्यते ।
गावः श्रेष्ठाः पवित्राश्च पावनं ह्येतदुत्तमम् ॥
गोदान अन्य दानों से श्रेष्ठ है । गायें सर्वोच्च और पवित्र हैं । (महाभारत, अनुशासन पर्व ८३-३)
*सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनंदनः ।
पार्थो वत्सः सुधीर्भोक्तादुग्धं गीतामृतः महत् ॥
भगवद्गीता उपनिषदों का सार है । यह श्री कृष्ण द्वारा दूही जानेवाली गाय के समान है । अर्जुन बछड़े जैसा है । विद्वान भक्त भगवद्गीता का दुग्ध पान कर रहें हैं ।
*गौर्मे माता वृषभः पिता मे दिवं शर्म जगते मे प्रतिष्ठा ।
गाय मेरी माता और बैल पिता है । यह युगल मुझे इस संसार और स्वर्ग दोनों में आनंद का आशीर्वाद दे । मैं अपने जीवन के लिये गाय पर निर्भर हूँ, यह करते हुए गाय को समर्पित हों ।
*गावो बंधुर्मनुष्याणां मनुष्याबांधवा गवाम् ।
गौः यस्मिन् गृहेनास्ति तद्बंधुरहितं गृहम् ॥
गायों में लक्ष्मी का निवास है । वे पापों से मुक्त हैं । मानव और गाय का संबंध अति सुंदर है । गौविहीन घर प्रियजनविहीन के समान है । (पद्मपुराण)
*वागिंद्रियस्वरूपायै नमः ।
वाचावृत्तिप्रद्दयिन्यै नमः ॥
अकारादिक्षकारांतवैखरीवक्स्
गो पदार्थों के उपयोग के माध्यम से गो सेवा, चेतना और साहस दोनों को बढ़ाती है । (अत्रि संहिता ३१०)
*यन्न वेद्ध्वनिध्यांतं न च गोभिरलंकृतम् ।
यन्नबालैः परिवृतं श्मशानमिव तद्गृहम् ॥
वह घर श्मशान के समान है जहाँ वेदों का पाठ नहीं होता और जहाँ गायें और बालक नहीं दिखते । (विष्णु स्मृति)
*गोमूत्रगोमयं सर्पि क्षीरं दधि च रोचना ।
षदंगमेतत् परमं मांगल्यं सर्वदा गवाम् ॥
गोमूत्र, गोबर, दूध, घी, दहीं और गोरोचन – यह ६ अत्यंत पवित्र पदार्थ हैं ।
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