Saturday, March 30, 2013




(*सनातन धर्म*)

देवता भी गो पूजा करते हैं । गाय में सब देवताओं का दिव्यत्व है । एक धर्मपूर्ण दिन का आरंभ उसकी पूजा से होता है । विभिन्न धार्मिक त्योहारों में उसकी प्रमुखता है । विशेषतः संक्रांति और दीपावली गाय से जुड़े उत्सव हैं । विभिन्न अनुष्ठानों में गव्य उत्पाद आवश्यक हैं । इस प्रकार गाय हमारे जीवन का अभिन्न अंग है ।

*वेद पुराणों में गाय*
यः पौरुषेण क्रविषा समंक्ते यो अश्वेन पशुना यातुधानः ।

ये अघ्न्याये भरति क्षीरमग्ने तेषां शीर्षाणि हरसापि वृश्चः ॥

हे अग्निदेव ! अपनी लपटों से उन दानवों के सर जला दो, जो मनुष्यों और घोड़े और गाय जैसे प्राणियों का मांस भक्षण करते और गाय का दूध चूसते हैं । (रिक संहिता ८७-१६१)

*प्रजापतिर्मह्यमेता रराणो विश्वैर्देवैः पितृभिः संविदानः ।

शिवाः सतीरुप नो गोष्ठमाकस्तासां वयं प्रजया संसदेम ॥

हे परमेश्वर, अन्य सब देवताओं के साथ हमारी खुशी के लिये शुभ और विशाल गो स्थान बनाकर उन्हें गाय और बछड़ों से भर दें । हम गो धन का आनंद लें और गायों की सेवा करें । (रिक संहिता १० – १६९-४)

*सा विश्वाय़ूः सा विश्वकर्मा सा विश्वधायाः।

गायें यज्ञों में रत सभी ऋषियों और यज्ञों के आयोजकों के आयुष्य को बढ़ायें । गाय यज्ञ के सभी संस्कारों का समन्वय करती है । अपने दूध के नैवेद्य से गाय यज्ञ के सभी देवताओं को संतुष्ट करती है । (शुक्ल यजुर्वेद १-४)

*आ गावो अग्मन्नुत भद्रकम्रन् सीदंतु गोष्मेरणयंत्वस्मे ।

प्रजावतीः पुरुरूपा इहस्स्युरिंद्राय पूर्वीरुष्सोदुहानाः ॥

यूयं गावो मे दयथा कृशं चिदश्रीरं चित्कृणुथा सुप्रतीकम् ।

भद्र गृहं कृणुथ भद्रवाचो बृहद्वो वय उच्यते सभासु ॥

गो माताओं ! तुम अपने दूध और घी से दुर्बलों को बलिष्ठ बनाती हो और रोगियों को स्वस्थ । अपनी पवित्र वाणी से तुम हमारे घरों को शुद्ध करती हो । सभाओं में तुम्हारा गुणगान होता है । (अथर्ववेद ४-२१-११ और ६)

*वशां देवा उपजीवंति वशां मनुष्या उप ।

वशेदं सर्वं भवतु यावतु सूर्यो विपश्यति ॥

देवता और मानव गो पदार्थों पर जीतें हैं । जब तक सूर्य चमकेगा, विश्व में गायें रहेंगी । सारा ब्रह्मांड गाय के संबल पर निर्भर है । (अथर्ववेद १०-१०-३४)

*सा नो मंद्रेषमूर्जम् दुहाना ।

धेनुर्वा गस्मानुष सुष्टुतैतु ॥

वह है कामधेनु – हमारी आवश्यकताओं को पूर्ण करने वाली दिव्य गाय । उसका मुख स्त्री और शरीर गाय का है । जब सागर मंथन हुआ तो वह अमृत के पूर्व निकली । उसके केशों से सुगंध फैलता है । अपने थनों से वह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की वृद्धि करती है । वह आत्म ज्ञान का घर है और सूर्य, चंद्र और अग्निदेव को शरण देती है । सब देवता और प्राणी उस पर निर्भर करते हैं । तनिक सी प्रार्थना पर वह हमें भोजन और परम ज्ञान देती है । वह हमारे निकट ही रहे ।

*पीतोदका जग्धतृणा दुग्धदेहा निरिंद्रियाः ।

आनंदा नाम तेलोकस्तान् स गच्चति ता ददत् ॥

इन गायों ने घास और जल का आहार लिया है । इन्हें दूहा गया है । वें अब प्रजनन आयु को पार कर चुकी हैं । इन गायों का त्याग करने वाला आनंदविहीन अंधेरे स्थल को प्राप्त होगा । इनके स्थान पर मुझे दान कर दो । (कठोपनिषद – विश्वजित यज्ञ के अवसर पर नचिकेता ऋषि ने वाजश्रवों से कहा)

*गोकुलस्य तृषार्तस्य जलार्थे वसुधाधिपः ।

उत्पादयति यो विघ्नं तं विद्याद्ब्रह्मघातिनम् ॥

प्यासी गायों को पानी देने में बाधा डालने को ब्रह्महत्या के समान मानना चाहिए । (महाभारत अनुशासन पर्व-२४-७)

*गवां मूत्रपुरीषस्य नोद्विजेत कथंचन ।

न चासां मांसमश्नीयाद्गवां पुष्टिं तथाप्नुयात् ॥

गोमूत्र और गोबर का सेवन करने में न हिच-किचायिये । ये पवित्र हैं । किंतु गोमांस का भक्षण कभी न करें । पंचगव्य सेवन से व्यक्ति बलिष्ठ बनता है । (महाभारत अनुशासन पर्व ७८-१७)

*गावो ममाग्रतो नित्यं गावः पृष्ठत एव च ।

गावो मे सर्वतश्चैव गवां मध्ये वसाह्यहम् ॥

मेरे सामनें, मेरे पीछे और मेरे चारों तरफ गायें हों । मैं गायों के साथ जीता हूँ । (महाभारत, अनुशासन पर्व ८०-३)

*दानानामपि सर्वेषां गवां दानं प्रशस्यते ।

गावः श्रेष्ठाः पवित्राश्च पावनं ह्येतदुत्तमम् ॥

गोदान अन्य दानों से श्रेष्ठ है । गायें सर्वोच्च और पवित्र हैं । (महाभारत, अनुशासन पर्व ८३-३)

*सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनंदनः ।

पार्थो वत्सः सुधीर्भोक्तादुग्धं गीतामृतः महत् ॥

भगवद्गीता उपनिषदों का सार है । यह श्री कृष्ण द्वारा दूही जानेवाली गाय के समान है । अर्जुन बछड़े जैसा है । विद्वान भक्त भगवद्गीता का दुग्ध पान कर रहें हैं ।

*गौर्मे माता वृषभः पिता मे दिवं शर्म जगते मे प्रतिष्ठा ।

गाय मेरी माता और बैल पिता है । यह युगल मुझे इस संसार और स्वर्ग दोनों में आनंद का आशीर्वाद दे । मैं अपने जीवन के लिये गाय पर निर्भर हूँ, यह करते हुए गाय को समर्पित हों ।

*गावो बंधुर्मनुष्याणां मनुष्याबांधवा गवाम् ।

गौः यस्मिन् गृहेनास्ति तद्बंधुरहितं गृहम् ॥

गायों में लक्ष्मी का निवास है । वे पापों से मुक्त हैं । मानव और गाय का संबंध अति सुंदर है । गौविहीन घर प्रियजनविहीन के समान है । (पद्मपुराण)

*वागिंद्रियस्वरूपायै नमः ।

वाचावृत्तिप्रद्दयिन्यै नमः ॥

अकारादिक्षकारांतवैखरीवक्स्वरूपिण्य़ै नमः ॥

गो पदार्थों के उपयोग के माध्यम से गो सेवा, चेतना और साहस दोनों को बढ़ाती है । (अत्रि संहिता ३१०)

*यन्न वेद्ध्वनिध्यांतं न च गोभिरलंकृतम् ।

यन्नबालैः परिवृतं श्मशानमिव तद्गृहम् ॥

वह घर श्मशान के समान है जहाँ वेदों का पाठ नहीं होता और जहाँ गायें और बालक नहीं दिखते । (विष्णु स्मृति)

*गोमूत्रगोमयं सर्पि क्षीरं दधि च रोचना ।

षदंगमेतत् परमं मांगल्यं सर्वदा गवाम् ॥

गोमूत्र, गोबर, दूध, घी, दहीं और गोरोचन – यह ६ अत्यंत पवित्र पदार्थ हैं ।


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