हिन्दू के यहाँ पैदा होनेसे ही कोई ज्ञान आ जाता है क्या...??..वो विरासत का ज्ञान खुद प्राप्त करना पड़ता है..बेवकूफी हम हिन्दुओं की भी तो है..सिर्फ एक सनातन धर्मी के यहाँ पैदा हो गये बस..अपने ना धर्म के बारे मे जानते हैं..ना ये समझते है कि किस व्यवस्था का निर्माण क्यों हुआ है..उनके क्या कार्य है..क्या अधिकार है..और क्या फर्ज हैं..आम तौर पर ये लग अलग क्यों रहते हैं..अलग रहकर भी समाज के संपर्क मे क्यों रहते हैं अथवा रहना पड़ता है..समाज मे उनके क्या महत्व और योगदान होते हैं..वे किन बातों मे और किस हद तक कहाँ कहाँ हस्तक्षेप कर सकते हैं..उन्हे ऐसा क्यों करना चाहिये..धर्म क्या है..अधर्मी जो सवाल पूछते हैं..उनके क्या समाधन और उत्तर होते हैं,धर्म का अर्थ क्या है..और ये हमारे लिये क्या महत्वपूर्ण है..क्या कर्म-काण्ड और रस्मे धर्म हैं..क्या रूढियाँ धर्म होती हैं..हमारा जीवन कैसा हो..हम क्यो हैं?पूजन क्या होता है,जीवन कैसे जिये...कुछ नही सोचा...सिर्फ एक 'जाँवा' की तरह ही हम भी जीवन जीते चले जाते हैं....
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