Thursday, April 11, 2013


...पुर रखवारे देखि बहु कपि मन कीन्ह बिचार ।
अति लघु रुप धरौं निसि नगर करौं पइसार ।।

मसक समान रुप कपि धरी । लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी ।।
नाम लंकिनी एक निसिचरी । सो कह चलेसि मोहि निंदरी ।
 जानेहि नहीं मरमु स� मोरा । मोर अहार जहाँ लगि चोरा ।।
मु� िका एक महा कपि हनी । रुधिर बमत धरनीं ढनमनी ।।
पुनि संभारि उ� ी सो लंका । जोरि पानि कर बिनय ससंका ।।
जब रावनहि ब्रह्य बर दीन्हा । चलत बिरंचि कहा मोहि चीन्हा ।।
बिकल होसि तैं कपि के मारे । तब जानेसु निसिचर संघारे ।।
तात मोर अति पुन्य बहूता । देखेउँ नयन राम कर दूता ।।...
.....................jai shri hanuman..................
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