Thursday, April 4, 2013

क्या आप जानते हैं किस देश की राष्ट्र भाषा थी संस्कृत




क्या आप जानते हैं किस देश की राष्ट्र
भाषा थी संस्कृत ?? कंबुज देश(कम्बोडिया) की 6 वी शताब्दी से लेकर
12 वी शताब्दी तक राष्ट्र भाषा थी।
शोधकर्ता भक्तिन कौन्तेया अपनी उपर्युक्त
शीर्षक वाल ऐतिहासिक रूपरेखा में संक्षेप में निम्न
प्रकार लिखते हैं कि प्राचीन काल में
कम्बोडिया को कंबुज देश कहा जाता था। 9 वी से 13 वी शती तक अङ्कोर साम्राज्य पनपता रहा।
राजधानी यशोधरपुर सम्राट यशोवर्मन ने
बसायी थी । अङ्कोर राज्य उस समय आज के
कंबोडिया, थायलॅण्ड, वियेतनाम और लाओस
सभी को आवृत्त करता हुआ विशाल राज्य था।
संस्कृत से जुडी भव्य संस्कृति के प्रमाण इन अग्निकोणीय एशिया के देशों में आज भी प्रचुर
मात्रा में विद्यमान हैं।
कंबुज शिलालेख जो खोजे गए हैं वे कंबुज, लाओस,
थायलैंड, वियेतनाम इत्यादि विस्तृत प्रदेशों में पाए
गए हैं। कुछ ही शिला लेख पुरानी मेर में मिलते हैं
जबकि बहुसंख्य लेख संस्कृत भाषा में ही मिलते हैं। संस्कृत उस समय की: संस्कृत उस समय की दक्षिण
पूर्वअग्निकोणीय देशों की सांस्कृतिक
भाषा थी। कंबुज, मेर ने अपनी भाषा लिखने के लिए
भारतीय लिपि अपनायी थी। आधुनिक मेर भारत
से ही स्वीकार की हुयी लिपि में लिखी जाती है।
वास्तव में ग्रंथ ब्राह्मीश ही आधुनिक मेर की मातृ.लिपि है। कंबुज देश ने देवनागरी और पल्लव
ग्रंथ लिपि के आधार पर अपनी लिपि बनाई है।
आज कल की कंबुज भाषा में 70 प्रतिशत शब्द सीधे
संस्कृत से लिए गए हैं, यह कहते है कौंतेय ।
मेर कंबुज भाषा ऑस्ट्रो.एशियाई परिवार
की भाषा है और संस्कृत भारोपीय परिवार की भाषा है, और चमत्कार देखिए कि भक्तिन
कौंतेया अपने लघु लेख में कहते हैं कि 70 प्रतिशत
संस्कृत के शब्द मेर में पाए जाते हैं, पर बहुत शब्दों के
उच्चारण बदल चुके हैं। यह एक ऐसा अपवादात्मक
उदाहरण है जो संस्कृत के चमत्कार से कम नहीं। कंबुज
मेर भाषा अपने ऑस्ट्रो.एशियाई परिवार से नहीं पर भारोपीय भारत.युरोपीय परिवार
की भाषा संस्कृत से शब्द ग्रहण करती है। संस्कृत
की उपयोगिता का इससे बडा प्रमाण और
क्या हो सकता है। भारत इस से कुछ सीखे।
सिद्धान्त:संसार की सारी भाषाओं की शब्द
विषयक समस्याओं का हल हमारी संस्कृत के पास है, तो फि र हम अंग्रेज़ी से भीख क्यों माँगें?
कुछ शब्दों के उदाहरण:कंबोजी भाषी शब्दों के कुछ
उदाहरण देखने पर उस भाषा पर संस्कृत का प्रभाव
स्पष्ट हो जाएगा।
कंबोजी महीनों के नाम
चेत-चैत्र, बिसाक-वैशाख, जेस-ज्येष्ठ आसाठ- आषाढ, श्राप-श्रावण-सावन, फ्यैत्रबोत-भाद्रपद,
गुण् भादरवो-आसोज-आश्विन-गुजराती आसोण
कातिक-कार्तिक, कार्तक मिगस-मार्गशीर्ष
गुजराती मागसर, बौह-पौष, माघ-माह, फागुन-
फाल्गुन फागण।
कुछ आधुनिक शब्दावली:धनागार बँक, भासा- भाषा, टेलिफोन के लिए दूरसब्द दूर शब्द तार के लिए
दूरलेख टाईप.राइटर को अंगुलिलेख तथा टायपिस्ट
को अंगुलिलेखक कहते हैं।
सुन्दर, कार्यालय, मुख, मेघ, चन्द्र, मनुष्य, आकाश,
माता पिता, भिक्षु आदि अनेक शब्द दैनिक प्रयोग
में आते हैं। उच्चारण में अवश्य अंतर है। कई शब्द साधारण दैनिक जीवन में प्रयुक्त न होकर काव्य
और साहित्य में प्रयुक्त होते हैं।
ऐसी परम्परा भारतीय भाषाओं में
भी मानी जाती है। शाला के लिए साला, कॉलेज
के लिए अनुविद्यालय, विमेन्स कॉलेज के लिए
अनुविद्यालय.नारी, युनिवर्सिटी के लिए महाविद्यालय, डिग्री या प्रमाण पत्र के लिए
सञ्ञा.पत्र साइकिल के लिए द्विचक्रयान,
रिक्षा के लिए त्रिचक्रयान ऐसे उदाहरण दिए
जा सकते हैं।
राष्ट्र भाषा संस्कृत: वास्तव में संस्कृत
ही न्यायालयीन भाषा थी, एक सहस्रों वर्षों से भी अधिक समय तक के लिए उसका चलन था।सारे
शासकीय आदेश संस्कृत में होते थे। भूमि के
या खेती के क्रय.विक्रय पत्र संस्कृत में ही होते थे।
मंदिरों का प्रबंधन भी संस्कृत में ही सुरक्षित
रखा जाता था। प्राय: 1250 शिलालेख उस में से
बहुसंख्य संस्कृत में लिखे पाए जाते हैं इस प्राचीन अङ्कोर साम्राज्य में। 1250 में से दो शिला लेख
उदाहरणार्थ प्रस्तुत।
श्रीमतां कम्बुजेन्द्राणामधीशोऽभूद्यशस्विनाम।
श्रीयशोवम्र्मराजेन्द्रो महेन्द्रो मरुतामिव॥10॥
श्री यशोवर्मन महाराजा हुए भव्य कंबुज देश के जैसे
इन्द्र महाराज हुए थे मरुत देश के। श्रीकम्बुभूभृतो भान्ति विक्रमाक्रान्तविष्टपा:।
विषकण्टकजेतारो दोद्र्दण्डा इव चक्रिण:॥9॥
श्री कंबु देश के राजा विश्व में अपने शौर्य और
पराक्रम से चमकते हैं और शत्रुओं को उखाड फेंकते है
जैसे विष्णु भगवान विषैले काँटो जैसे शत्रुओं
को उखाड़ फेंकते थे।


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