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भारत का स्वर्णिम अतीत
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भारत का स्वर्णिम अतीत
सभी सम्माननीय बहनों भाइयों, भारत देश का भूतकाल कैसा था, अतीत कैसा था, इसके बारे में मुझे आपसे कुछ बात कहनी है. मैं उसके लिए आपके सामने कुछ प्रमाण प्रस्तुत करूंगा, उन प्रमाणों के आधार पर हम सब उस बात का अंदाजा लगा लेंगे, आकलन कर लेंगे की भारत का अतीत कैसा था भारत का इक अतीत तो है जो बहुत पुराना है वेदों के समय का है वेद कालीन है और वह दसवीं शताब्दी तक चलता है वेदों के समय से ले कर दसवीं शताब्दी तक का, मैं आपको भारत के उस अतीत के बारे में बात करूंगा जो अभी हाल में हमारे सामने रहा १५० – २०० साल पहले तक अठारहवीं शताब्दी तक सत्रहवीं शताब्दी तक सोलहवीं शताब्दी तक, पंद्रहवीं शताब्दी तक माने आज से लगभग १०० – १५० साल पहले से शुरू कर के और पिछले हजार साल का जो भारत का इतिहास है कैसा है वह उसके बारे में थोड़ी सी बात करूंगा. और इक जानकारी आपको स्पष्टता के लिए देना चाहता हूँ, वह ये कि भारत के इतिहास पर भारत के अतीत पर दुनिया भर के २०० से ज्यादा विद्वान इतिहास विशेषज्ञों ने बहुत ज्यादा शोध किया बहुत शोध किया, और दुनिया भर के ये २०० से ज्यादा विद्वान शोधकर्ता इतिहास के विशेषज्ञ भारत के बारे में क्या कहते रहे है, इनमें से कुछ विशेषज्ञों की बात आपके सामने रखूंगा. सभी विशेषज्ञों का रखना बड़ा मुश्किल है क्योंकि २०० विशेषज्ञों का काफी समय जाएगा लेकिन उसमें से जो प्रमुख है मुख्य है वैसे ८ – १० विशेषज्ञों की बात आपके सामने रखूंगा, और ये सारे विशेषज्ञ भारत से बहार के है कुछ अंग्रेज है, कुछ सकोटीश है, कुछ अमरीकन है कुछ फ्रेंच है, कुछ जर्मन है. ऐसे दुनिया के अलग अलग देशों के विशेषज्ञों ने भारत के बारे में जो कुछ कहा है, लिखा है और उसके जो प्रमाण दिए है उन पर बात मुझे कहनी है सबसे पहले है इक अंग्रेज की जानकारी मैं आपको दूं उसका नाम है थामस बेव मैकाले, टी बी मैकाले जिसको हम कहते है. ये भारत में आया करीब १७ वर्ष देश में रहा सबसे ज्यादा जो अंग्रेज अधिकारी इस भारत में रहें उनमें से इसकी गिनती होती है मैकाले की और जब वह भारत में रहा तो भारत का काफी उसने प्रवास किया, यात्रा की, उत्तर भारत में गया, दक्षिण भारत में गया, पूर्वी भारत में गया पश्चिमी भारत में गया और अपने सत्रह साल के भारत के प्रवास के बाद वह इंग्लैंड गया और इंग्लैंड की पार्लियामेंट में हाउस ऑफ कॉमन्स उसने इक लम्बा भाषण दिया उस भाषण का थोड़ा सा अंश परम पूजनीय स्वामी जी द्वारा लिखित जो पुस्तक है “शंखनाद” उसमें आप पढ़ सकते है, और वह अंश है और ये कह रहा है ब्रिटिश पार्लियामेंट के हाउस ऑफ कॉमन्स में “आई हेव ट्रावेल्ड लेंथ एंड ब्रेथ ऑफ दिस कंट्री इंडिया बट आई हेव नेवर सीन ए बेगर एंड थीफ इन दिस कंट्री इंडिया”. इसका मतलब क्या है ? वह ये कह रहा है की मैं सम्पूर्ण भारत में प्रवास कर चूका हु, उत्तर से दक्षिण, पूरब से पश्चिम में मैं जा चूका हु, लेकिन मैंने कभी भी अपनी आँखों से भारत में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं देखा - जो चोर हो, एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं देखा – जो बेरोजगार हो, एक भी व्यक्ति मैंने ऐसा नहीं देखा - जो गरीब हो, ये बात आप ध्यान दीजिएगा, वह २ फरवरी सन १८३५ को कह रहा है माने आज से अगर ये हम जोड़ेंगे तो लगभग १६०, १७० साल पहले वह ये बोल रहा है, कि एक भी व्यक्ति भारत में गरीब नहीं है, बेरोजगार नहीं है, चोर नहीं है. वह यह कह रहा है इसका माने की भारत में गरीबी नहीं थी बेरोजगारी नहीं थी और चोरी कोई क्यों करेगा जब कोई गरीब नहीं है, बेरोजगार नहीं है, फिर आगे के वाक्य में वह और बड़ी बात कह रहा है वह कह रहा है “आई हवे सीन सच वेल्थ इन दिस कंट्री इंडिया देट वी कैन नोट इमेजिन टू कोंक्वेर्ड टू दिस कंट्री इंडिया. वह कहता है की भारत में इतना धन और इतनी संपत्ति और इतना वैभव मैंने देखा है कि इन भारतवासियों को गुलाम बनाना बहुत मुश्किल काम है. ये आसन नहीं है. क्यों ? वह खुद कहता है कि जो लोग बहुत पैसे वाले होते है समृद्ध शाली होते है बहुत अमीर होते है वह लोग जल्दी किसी के गुलाम नहीं होते. इसलिए भारतवासी हमारे गुलाम हो जाएँगे ये मुझे बहुत मुश्किल लगता है , और फिर वह अगले भाषण में वह बहुत लम्बी बात कहता है भारत की शिक्षा, भारत की संस्कृति भारत की सभ्यता के बारे में. मैं उस बात को आगे नहीं ले जाना चाहता, फिर प्रमाण के रूप में २ फरवरी १८३५ को दिए गए उसके भाषण के ये २ – ३ वाक्य है, जो हमारे ध्यान में आने चाहिए कि भारत में एक अंग्रेज घूम रहा है और कह रहा है कही कोई गरीब नहीं है कोई बेरोजगार नहीं है किसी को चोरी करने की भारत में जरूरत नहीं है इसका माने भारत कुछ काफी समृद्ध शाली देश है फिर इसी भाषण के अंत में मैकाले एक वाक्य और कहता है उसको मैं सीधे सुनाता हु, वह कहता है कि भारत में जिस व्यक्ति के घर में भी मैं कभी गया तो मैंने देखा कि वहां सोने के सिक्कों का ढेर ऐसे लगा रहता है जैसे की चने का या गेहूँ का ढेर किसानों के घरों में रखा जाता है माने सामान्य घरों से ले कर विशिष्ट घरों तक सबके पास सोने के सिक्के इतनी अधिक मात्रा में होते है कि वह ढेर लगा कर उन सिक्को को रखते है. और वह कह रहा है कि भारतवासी कभी इन सिक्कों को गिन नहीं पाते क्योंकि गिनने की फुर्सत नहीं होती है इसलिए वह तराजू में तोल कर रखते है. किसी के घर में १०० किलो सोना होता है किसी के घर में २०० किलो होता है किसी के घर में ५०० किलो होता है इस तरह से सोने का हमारे भारत के घरों में भंडार भरा हुआ है, ये एक प्रमाण मैकाले का भाषण ब्रिटेन की संसद में २ फरवरी १८३५ को. इसके बाद इससे भी बड़ा एक दूसरा प्रमाण मैं आपको देता हु, एक अंग्रेज इतिहासकार हुआ उसका नाम है विलियम डिग्बी, ये बहुत बड़ा इतिहासकार माना जाता है इंग्लैंड में, अंग्रेज लोग इसकी बहुत इज्जत करते है, इसका बहुत सन्मान करते है, और ना सिर्फ अंग्रेज इसका सन्मान करते है इज्जत करते है बल्कि यूरोप के सभी देशों में विलियम डिग्बी का बहुत सन्मान है बहुत इज्जत है, अमरीका में भी इसकी बहुत सन्मान और बहुत इज्जत है कारण क्या है, विलियम डिग्बी के बारे में कहा जाता है की वह बिना प्रमाण के कोई बात नहीं कहता और बिना दस्तावेज के बिना सबूत के वह कुछ लिखता नहीं है. इसलिए इसकी इज्जत पूरे यूरोप और अमरीका में है. वह विलियम डिग्बी भारत के बारे में एक बड़ी पुस्तक लिखा है उस पुस्तक का एक थोड़ा सा अंश मैं सुनाता हु आपको. उसने तो ये अँग्रेज़ी में लिखा है मैं इसे हिंदी कर के बताता हु. विलियम डिग्बी कहता है की अंग्रेजो के पहले का भारत विश्व का सर्व सम्पन्न कृषि प्रधान देश ही नहीं बल्कि ये सर्वश्रेष्ठ औद्योगिक और व्यापारिक देश भी था अंग्रेजो से पहले का भारत खाली खेती वाला भारत नहीं था कृषि वाला भारत नहीं था वह औद्योगिक और व्यापारिक देश भारत था जो सर्वश्रेष्ठ था उसके शब्द पर गौर कीजिएगा वह कह रहा है सर्वश्रेष्ठ माने दुनिया में भारत के मुकाबले उस ज़माने में कोई भी देश नहीं था. और ये बात वह कब कह रहा है सत्रहवी शताब्दी में वह कह रहा है माने आज से अगर हम गिनना शुरु करे तो लगभग ३०० साल पहले के भारत के बारे में विलियम डिग्बी कह रहा है की सारी दुनिया के देशों में भारत औद्योगिक रूप से व्यापारिक रूप से और कृषि के रूप में सर्वश्रेष्ठ देश है माने कृषि उत्पादन हमारा सबसे अच्छा है औद्योगिक उत्पादन दुनिया में सबसे ज्यादा है और व्यापार भी हम दुनिया में सबसे ज्यादा करते है. उसके आगे वह कहता है कि भारत की भूमि इतनी उपजाऊ है जितनी दुनिया के किसी देश में नहीं फिर आगे कहता है कि भारत के व्यापारी इतने ज्यादा होशियार है जो दुनिया के किसी देश में नहीं फिर वह आगे कहता है की भारत जो के कारीगर हाथ से जो कपड़ा बनाते है उनका बनाया हुआ कपड़ा रेशम का तथा अन्य कई वस्तुए पूरे विश्व के बाजार में बिक रही है और इन वस्तुओ को भारत के व्यापारी जब बेचते है तो बदले में इन वस्तुओ के वह सोना और चांदी की मांग करते है जो सारी दुनिया के दूसरे व्यापारी आसानी के साथ भारतवासिओ के व्यापारियो को दे देते है. इस वाक्य को ठीक से समझिए वह कह रहा है की भारत का कपड़ा, भारत की अन्य वस्तुए दुनिया के बाजार में बिकती है और भारतवासी इनको सोने के बदले में बेचते है माने हम कपड़ा बेचते है तो सोना लेते है दूसरी वस्तुए बेचते है तो सोना लेते है. सोने के बदले में ही भारत के व्यापारी इन वस्तुओ का विनिमय दूसरों से करते है. क्योंकि ये वस्तुए सर्वश्रेष्ठ है और दुनिया में कोई भी दूसरा देश इनको बना नहीं सकता क्यों की इसकी कारीगरी और इनका हुनर सिर्फ भारत और भारत के ही पास है. फिर वह इसी में आगे कहता है कि भारत देश में इन वस्तुओ की उत्पादन के बाद की जो बिक्री की जो प्रक्रिया है वह दुनिया के दूसरे बाज़ारों पर निर्भर है. और ये वस्तुए जब दूसरे देशों के बाज़ारों में जब बिकती है तब भारत में सोना और चांदी ऐसे प्रवाहित होता है जैसे नदियों में पानी प्रवाहित होता है. और भारत की नदियों में पानी प्रवाहित हो कर जैसे महासागर में गिर जाता है वैसे ही दुनिया की तमाम नदियों का सोना चांदी भारत में प्रवाहित हो कर भारत के महासागर में आकर गिर जाता है. और वह अपनी पुस्तक में कहता है कि दुनिया के देशों का सोना चांदी भारत में आता तो है लेकिन भारत के बाहर १ ग्राम सोना और चांदी कभी जाता नहीं है. कारण क्या है ? वह कहता है की भारतवासी दुनिया में सारी वस्तुओ का उत्पादन करते है लेकिन वह कभी किसी से खरीदते कुछ नहीं है. मतलब सीधा सा ये है कि भारत आयात कुछ नहीं करता है इम्पोर्ट कुछ नहीं करता है जो भी कुछ है भारत वह सिर्फ एक्सपोर्ट और एक्सपोर्ट और निर्यात ही निर्यात करता है. इसका मतलब बहुत साफ है कि आज से ३०० साल पहले का भारत निर्यात प्रधान देश था एक भी वस्तु हम विदेशों से नहीं खरीदते थे. और वस्तुओ को बेच कर हम सोना चांदी सारी दुनिया से ले कर आते थे. विलियम डिग्बी जैसा एक बड़ा इतिहासकार हुआ वह फ़्रांस का हुआ उसका नाम है फ्रांस्वा पेरार्ड. फ्रांस्वा पेरार्ड ने १७११ में भारत के बारे में एक बहुत बड़ा ग्रंथ लिखा है. और उसमें उसने सेकड़ो प्रमाण दिए है. उस ग्रंथ में से एक छोटा सा प्रमाण मैं आपको प्रस्तुत करना चाहता हु. फ्रांस्वा पेरार्ड अपनी पुस्तक में कहता है कि भारत देश में मेरी जानकारी में ३६ तरह के ऐसे उद्योग चलते है जिसमे उत्पादित होनेवाली हर वस्तु विदेशों में निर्यात होती है फिर वह आगे लिखता है kiकि भारत के सभी शिल्प एवं उद्योग उत्पादन में सबसे उत्कृष्ट, कलापूर्ण और कीमत में सबसे सस्ते है. सोना, चांदी, लोहा, इस्पात, तम्बा अन्य धातुए जवाहरात लकड़ी के सामान मूल्यवान दुर्लभ प्रदार्थ ये सब इतनी ज्यादा विविधता के साथ भारत में बनती है जिनके वर्णन का कोई अंत नहीं हो सकता. और जो सबसे महत्व की बात वह कह रहा है कि मुझे जो प्रमाण मिले है, फ्रांस्वा पेरार्ड अपनी पुस्तक में लिख रहा है कि मुझे जो प्रमाण मिले है उनसे ये पता चलता है कि भारत का निर्यात दुनिया के बाज़ारों में पिछले ३ हजार वर्षों से आबादित रूप से बिना रुके हुए लगातार चल रहा है. ये बात वह १७११ में लिख रहा है, और कह रहा है कि पिछले ३००० साल से भारत का निर्यात दुनिया के बाज़ारों में चल रहा है इसका माने आप इसका अंदाजा लगाइए, १७ वी शताब्दी में, उससे १ हजार साल पहले ७ वी शताब्दी में, और उससे १ हजार साल पहले, और उससे १ हजार साल पहले, अगर ये पूरी गणना हम करते जाए तो महात्मा बुद्ध के जन्म से लगभग पांच सौ वर्ष पहले, हमारे देश के तीर्थंकर महावीर स्वामी के जन्म से लगभग साढ़े छ सौ वर्ष पहले, भारत दुनिया के सभी देशों के बाज़ारों में सबसे ज्यादा निर्यात करने वाला देश है. ३००० साल की गिनती फ्रांस्वा पेरार्ड ने भारत के बारे में निकाली है. फिर उसके बाद एक स्कोटिश है, जिसका नाम है मार्टिन वह इतिहास की पुस्तक में भारत के बारे में कहता है, की ब्रिटेन के निवासी, इंग्लैंड के निवासी जब बर्बर और जंगली जानवरों की तरह से जीवन बिताते रहे तब भारत में दुनिया का सबसे बेहतरीन कपड़ा बनता था और सारी दुनिया के देशों में बिकता था. और ये मार्टिन नाम का जो स्कोटिश हिस्टोरियन है ये कहता है कि मुझे ये स्वीकार करने में कोई शर्म नहीं है की भारतवासियों ने सारी दुनिया को कपड़ा बनाना और कपड़ा पहनना सिखाया है. और वह कहता है हम अंग्रेजो ने और अंग्रेजो के सहयोगी जातियों के लोगों ने भारत से ही कपड़ा बनाना सीखा है और पहनना भी सीखा है. फिर वह कहता है कि रोमन साम्राज्य में जितने भी राजा और रानी हुए है वह सभी भारत से कपड़े मँगवाते रहे है पहनते रहे है और उन्हीं से उनका जीवन चलता रहा है. एक फ़्रांसीसी इतिहासकार है १७५० में उसका नाम है टेवोर्निस वह क्या कह रहा है वह कह रहा है भारत के वस्त्र इतने सुन्दर और इतने हल्के है कि हाथ पर रखो तो पता ही नहीं चलता कि उसका वजन कितना है. सूत की महीन कताई मुश्किल से नजर आती है, भारत में कालीकट, ढाका, सूरत, मालवा में इतना महीन कपड़ा बनता है कि पहनने वाले का शरीर ऐसा दिखता है कि मनो वह एकदम नग्न है, माने कपड़े की बुनाई इतनी बारीक़ है कि अन्दर का शरीर भी उसमे से दिखाई देता है. वह कहता है इतनी अदभुत बुनाई भारत के कारीगर जो हाथ से कर सकते है वह दुनिया के किसी भी देश में कल्पना करना संभव नहीं है. फिर उसके बाद एक अंग्रेज है विलियम बांड वह कहता है की भारत में मलमल का उत्पादन इतना विलक्षण है, ये भारत के कारीगरों के हांथो का कमाल है. जब इस मलमल को खाट पर बिछा दिया जाता है और उस पर ऑस की कोई बूंद गिर जाती है तो वह दिखाई नहीं देती है क्योकि ऑस की बूंद में जितना पतला रंग होता है माने जितना हल्का रंग होता है उतना ही हल्का वह कपड़ा होता है. इसलिए ऑस की बूंद और कपड़ा आपस में मिल जाते है अलग अलग दिखाई नहीं देते इतनी बारीक़ बुनाई भारत के कपड़े की है. आपने बहूत बार इतिहास में एक वाक्य सुना होगा कि भारत में बनाया हुआ कपड़ा एक छोटे से अंगूठी से रिंग में से खिंच कर बाहर निकला जा सकता था. वो १३ – १४ मीटर का लम्बा थान होता था. वो वाक्य इसी इतिहासकार ने लिखा है जिसका नाम है विलियम बांड, वो ये कहता है की भारत का १३ गज का एक लम्बा कपड़ा हम चाहे तो एक छोटी सी रिंग में से पूरा खिंच कर बाहर निकल सकते है. इतनी बारीक़ और इतनी महीन बुनाई भारत के कपड़े की यहाँ पर होती है. फिर वो कहता है कि भारत का १५ गज का लम्बा थान आप गज तो समझते ही है मीटर से थोड़ा छोटा होता है. अगर १५ गज की मै बात करू तो वो लगभग १४ मीटर के बराबर बैठेगा. तो चोदह मीटर लम्बा थान या १५ गज का लम्बा थान वो कह रहा है कि उसका वजन सौ ग्राम से भी कम होता है. अब आप कल्पना करिए १५ गज का इतना बड़ा थान उसका वजन सौ ग्राम से भी कम होता है, वो कह रहा है कि मैंने बार बार भारत के कई थानों का वजन किया है हर एक थान का वजन सौ ग्राम से भी कम निकलता है. और कुछ थान का वजन तो ग्रेन में उसने तौला है, ग्रेन एक इकाई होती है, अंग्रेजी इकाई है. जैसे हम सुनार के पास जाते है न, सुनार सोने को तौलता है तो एक तौल होती है, जो १० ग्राम की होती है और एक तौल १० ग्राम से भी कम की होती है तो तौला जिसको हम कहते है न वो १० ग्राम का होता है. तौला से छोटी एक इकाई होती है जिसको रत्ती कहते है रत्ती, तो रत्ती १० ग्राम से भी छोटी होती है. तो वो विलियम बांड ये कह रहा है कि भारत के बहूत सारे थानों को मैंने तौला तो पता चला कि उनका कुल वजन लगभग १५ से २० रत्ती के आसपास है इतने कम वजन के भी कपड़े भारत में बनते है. और इतनी बारीक़ बुनाई भी होती है और कहता है विलियम बांड कि अंग्रेजो ने तो कपड़ा बनाना सन १७८० के बाद शुरु किया है भारत में तो पिछले ३००० साल से कपड़े का उत्पादन होता रहा है और सारी दुनिया में बिकता रहा है. एक और अंग्रेज अधिकारी का थोड़ा सा बताऊ थॉमस मुनरो नाम का एक अंग्रेज अधिकारी है वो मद्रास में गवर्नर रहा है, और लम्बे समय तक वो गवर्नर रहा है. गवर्नर रहते समय किसी राजा ने उसको एक शाल भेंट में दे दिया और जब उसकी नौकरी पूरी हो गयी थॉमस मुनरो की तो वो भारत से वापस लंदन चला गया. लंदन की संसद में उसने एक दिन अपना बयान दिया सन १८१३ में और वो कह रहा है कि भारत से मै एक शाल ले के आया, उस शाल को मै सात वर्षो से उपयोग कर रहा हु, उसको कई बार धोया है और प्रयोग किया है उसके बाद भी उसकी क्वालिटी एकदम बरक़रार है और उसमे कहीं कोई सिकुडन नहीं है, मैंने पुरे यूरोप में प्रवास किया है एक भी देश ऐसा नहीं है जो भारत की ऐसी क्वालिटी की शाल बना कर दे सके. भारत ने अपने वस्त्र उद्योग में सारी दुनिया का दिल जीत लिया है. भारत के वस्त्र अतुलित और अनुपमेय मानदंड के है, जिसमे सारे भारतवासी रोजगार पा रहे है और इस तरह से लगभग २०० इतिहासकार है सभी का बताना थोड़ा मुश्किल है. आप अंदाजा लगा सकते है कि फ़्रांसिसी इतिहासकार हो तो, स्कोटिश इतिहासकार हो तो, अंग्रेज इतिहासकार हो तो या इसके अलावा जर्मन का कोई या अमेरिका का कोई सारे इतिहासकार जो भारत के बारे में शोध करते है वो ये कहते है कि भारत के उद्योगों का और भारत की कृषि व्यवस्था का भारत के व्यापार का सारी दुनिया में कोई मुकाबला नहीं है. अब इसके आगे एक छोटी सी जानकारी मै देना चाहता हु, अंग्रेजो की संसद में भारत के बारे में समय समय पर बहस होती रही है, तो सन १८१३ में भारत के बारे में एक बहस हो रही है और उस बहस के समय जो अंग्रेजी सांसद बात कर रहे है उनमे कई सारी रिपोर्ट है कई सारे सर्वे है, सर्वेछन है, जिनका हवाला दिया जा रहा है. तो ऐसी ही एक रिपोर्ट का हवाला मै आपके सामने रखता हु, अंग्रेजो की संसद में बहस हो रही है कि भाई भारत की आर्थिक स्थिति क्या है और कैसी है तो भारत की आर्थिक स्थिति के बारे में कहा जा रहा है कि सारी दुनिया में जो कुल उत्पादन होता है उसका ४३ प्रतिशत उत्पादन अकेले भारत में होता है. आप जरा भारत के भूतकाल का अंदाजा लगाइए, अतीत का जरा अंदाजा लगाइए कि पूरी दुनिया में मान लीजिए १०० अरब का उत्पादन होता हो उस ज़माने में तो ४३ अरब डालर का उत्पादन अकेले केवल भारत में होता है. इसको एक दुसरे तरीके से समझने की कोशिश करे कि सारी दुनिया में अगर १०० रूपये का मॉल बनता है तो ४३ रूपये का मॉल अकेले भारत में बनता है अब आप जरा देखिये, दुनिया में २०० देश है. २०० देशो में कुल मिला कर उत्पादन है वो ५७ प्रतिशत है और भारत अकेले में जो कुल उत्पादन है वो ४३ प्रतिशत है माने सारी दुनिया के २०० देशो में से २ – ४ को छोड़ कर एक तरफ कर दें और भारत अकेला एक तरफ हो जाए तो कई देशो का उत्पादन भारत के अकेले उत्पादन के बराबर बैठता है. इतना बेहतरीन उत्पादन करने वाला ये देश रहा है और ये आंकड़ा सबसे पहली बार अंग्रेजो की संसद में सन १८१३ में कोट किया गया बाद में इसी आंकड़े को अंग्रेजो ने १८३५ में quoteकोट किया और १८४० में भी कोट किया और अंग्रेजो का ये कहना है कि १८४० तक भारत का उत्पादन सारी दुनिया में सबसे अधिक है और वो कुल दुनिया के उत्पादन का ४३ प्रतिशत है. अब मै थोड़ी तुलना करू तो आपको बात समझ में आएगी, आज अगर सारी दुनिया के कुल उत्पादन की बात जाये तो अमेरिका देश का कुल उत्पादन सारी दुनिया के कुल उत्पादन का लगभग २५ प्रतिशत है और थोड़ा आगे बढे तो अमेरिका के साथ चीन नाम के देश कुल उत्पादन पूरी दुनिया के उत्पादन का लगभग २३ प्रतिशत है, ये २३ प्रतिशत और २५ प्रतिशत चीन और अमेरिका दोनों मिल जाये तो इनका लगभग कुल उत्पादन जो होता है उससे थोड़ा ही कम भारत का कुल उत्पादन रहा आज से लगभग पोने दो सौ वर्ष पहले तक माने आज की दुनिया में चीन और अमेरिका मिल कर जितना कुल उत्पादन करते है उतना उत्पादन लगभग उससे थोड़ा कम भारत करता रहा १८४० के साल तक. इतना बड़ा उत्पादक देश था भारत. फिर इसके बाद अंग्रेजो की संसद में और एक आंकड़ा भारत के बारे में कोट किया गया, कि सारी दुनिया के व्यापार में भारत का जो हिस्सा है. वो लगभग तैतालिस प्रतिशत है, इसका मतलब क्या हुआ, पूरी दुनिया में जो सामान बिक रहा है, निर्यात हो रहा है, उसमे भारत का निर्यात लगभग तैतीस प्रतिशत है. और ये आंकड़ा अंग्रेजो ने १८४० तक कोट किया है. माने सन १८४० तक सारी दुनिया के बाजार में भारत का मॉल तैतीस प्रतिशत बिकता है. अब आप सौ रुपिए का या सौ अरब डालर का निर्यात देखें पूरी दुनिया में तो तैतीस अरब डालर का निर्यात भारत का, सौ अरब डालर का उत्पादन देखें पूरी दुनिया में तो तैतालिस अरब डालर का उत्पादन भारत का, और इसी तरह से और एक आंकड़ा अंग्रेजो की संसद में भारत के बारे में कोट किया गया और वो आंकड़ा है कि सारी दुनिया की जो कुल आमदनी है, सकल जगत की जो कुल आमदनी है उस आमदनी का लगभग २७ प्रतिशत हिस्सा अकेले भारत का है तब आप कल्पना करिए, दुनिया की कुल आमदनी का २७ प्रतिसत हमारा हिस्सा, दुनिया के कुल निर्यात का ३३ प्रतिशत हमारा हिस्सा, और दुनिया के कुल उत्पादन का ४३ प्रतिशत हमारा हिस्सा, ऐसा बड़ा अदभुत उत्पादक, निर्यातक और व्यापारिक देश भारत रहा है सन १८४० तक. अब उस समय अमेरिका की बात करें तो १८४० में सारी दुनिया के निर्यात में अमेरिका का निर्यात जो है वो १ प्रतिसत से कम है सारी दुनिया के निर्यात में ब्रिटेन का निर्यात सन १८४० तक आधे प्रतिसत से कम है, और पुरे यूरोप का और अमेरिका का निर्यात इकठ्ठा कर दिया जाए तो सन १८४० तक सारी दुनिया के निर्यात में ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोप के सभी देशो के जोड़ दें, तो ३ से ४ प्रतिसत से ज्यादा निर्यात उनका नहीं निकलता है. तो एक तरफ यूरोप और अमेरिका है और एक तरफ अकेला भारत है, उनके २७ देशो को इकठ्ठा करें यूरोप और अमेरिका मिला कर तो ३ – ४ प्रतिशत निर्यात कर रहे है, अकेले भारत उस समय ३३ प्रतिशत निर्यात कर रहा है . और ये २७ देशो को इकठ्ठा कर दिया जाए, यूरोप और अमेरिका के साथ, तो उनका कुल उत्पादन दुनिया में १० से १२ प्रतिशत है और भारत का उत्पादन ४३ प्रतिशत है. और ये २७ देशो को अमेरिका के साथ इकठ्ठा कर दिया जाए यूरोप के तो उनकी कुल आमदनी दुनिया की आमदनी में ४ से ४.५ प्रतिशत है aurऔर भारत की कुल आमदनी २७ प्रतिशत है. इन आंकड़ो से आप अंदाजा लगा सकते है कैसा अदभुत उत्पादन करने वाला, कितना विशाल दुनिया के बाजार में निर्यात करने वाला देश ये भारत रहा है.
थोड़ा आगे बढ़ता हू, शिक्षा व्यवस्था के बारे में, थोड़ी तकनीकी और विज्ञान की बातें, और थोड़ी सी कृषि व्यवस्था की बातें कर लेना चाहता हू, उद्योगों के साथ-साथ इस देश में विज्ञान और तकनिकी का भी बहुत विकास हुआ है. और हमारे अतीत के भारत की विज्ञान और तकनिकी के बारे में दुनिया भर के बहुत सारे शोधकर्ताओ ने बहुत सारी पुस्तके लिखी है. ऐसा ही एक अंग्रेज है जिसका नाम है जी डब्लू लिट्नेर वो भारत में कगी लम्बे समय तक रहा, और एक दूसरा अंग्रेज जिसका नाम थोड़ी देर पहले मैंने लिया थामस मुनरो, ये भी भारत में काफी दिनों तक रहा. ये दोनों ने भारत की शिक्षा व्यवस्था पर बहुत ज्यादा काम किया है. एक और अंग्रेज है जिसका नाम है ???????????????टेंडरक्रस्ट
अब इससे थोड़ा आगे चालू अगर स्टील इतनी अच्छी क्वालिटी का है तो एक अंग्रेज अधिकारी है उसका नाम है लेफ्टिनेंट कर्नल ए. वाकर, उसने भारत के शिपिंग इंडस्ट्री पर में सबसे ज्यादा रिसर्च किया है. वो ये कहता है कि भारत का जो अदभुत लोहा है, स्टील है ये जहांज बनाने के काम में बहूत ज्यादा आता है. और वो कहता है कि दुनिया में दुनिया में जहांज बनाने की सबसे पहली कला और सबसे पहली तकनिकी भारत में ही विकसित हुई है. और दुनिया के देशो ने पानी के जहांज बनाना भारत से सीखा है. और किसी देश के पास पानी का जहांज बनाने की तकनिकी उपलब्ध ही नहीं रही है. फिर वो कह्ता है कि भारत इतना विशाल देश है इसमें लगभग २ लाख गाँव है, इन २ लाख गावों को समुद्र के किनारे स्थापित हुआ माना जाता है. इन सभी गावों में जहांज बनाने का काम पिछले हजारों वर्षो से चलता है. वो ये कहता है कि हम अंग्रेज लोगों को जहांज खरीदना हो तो हम भारत में जाते है और वहां से जहांज खरीद कर लाते है. फिर वो अपने आगे अख रहा है कि ईस्ट इंडिया कंपनी के जितने भी पानी के जहांज दुनिया में चल रहे है ये सारे के सारे जहांज भारत की स्टील से बने है. ये बात मुझे कहते हुए शर्म आती है के हम अंग्रेज अभी तक इतनी अच्छी क्वालिटी का स्टील बनाना नहीं शुरु कर पाए है. फिर वो कहता है कि भारत का कोई पानी का जहांज जो पचास साल चल चूका है पानी में, उसको अगर हम खरीद ले अंग्रेज, और खरीदने के बाद उसको कंपनी की सेवा में लगाये तो पचास साल तो वो भारत में चल चूका है, हमारे यहाँ आने के बाद भी वो बीस पच्चीस साल और चल जाता है. इतनी मजबूत पानी के जहांज बनाने की कला और टेक्नोलोजी भारत के कारीगरों के हाँथ में है. और फिर वो वो कहता है के हम जितने धन में एक नया पानी का जहांज बनाते है, उतने ही धन में भारतवासी चार नए जहांज पानी के बना लेते है. फिर वो अंत में कहता है के हम भारत में पुराने पानी के जहांज ख़रीदे, और उसको ईस्ट इंडिया कंपनी की सेवा में लगाए यही हमारे लिए अच्छा है. नया जहांज बना कर हम ईस्ट इंडिया कंपनी को दिवालिया नहीं कर सकते है, उसके पैसे बर्बाद नहीं कर सकते है. मतलब उसका कहने का ये है कि भारत का पुराने से पुराना पानी का जहांज अंग्रेजो के नए से नए पानी के जहांज से भी अच्छा माना जाता है. क्योंकि स्टील की क्वालिटी, लोहे की क्वालिटी इतनी जबरदस्त है.
और इसी तरह से वो कहता है कि भारत में टेक्नोलोजी के लेवल पर ईंट बनती है, ईंट से ईंट को जोड़ने का चूना बनता है.
और उसके अलावा भारत में ३६ तरह के दुसरे टेक्नोलोजिकल इंडस्ट्रीज है, ये सभी उद्योगों में भारत दुनिया में सबसे आगे है. इसलिए हमें भारत से व्यापार कर के ये सब sतकनिकी लेनी है, और इस तकनिकी को इंग्लैंड में ला कर फिर से उसको रिप्रोडूस करना है, पुनरुत्पादित करना है. तो भारत टेक्नोलोजी में बहूत ऊँचा है, और इसी तरह से विज्ञान में भी बहुत ऊँचा है. भारत के विज्ञान के बारे में एक दो नहीं बिसियो अंग्रेजो ने रिसर्च की है, शोध की है, और वो ये कहते है कि भारत में विज्ञान की बीस से ज्यादा शाखाए है, जो बहुत ज्यादा पुष्पित और पल्लवित हुई है. उनमे सबसे बड़ी शाखा है वो खगोल विज्ञान है, दूसरी बड़ी शाखा है वो नक्षत्र विज्ञान है, तीसरी बड़ी शाखा है बर्फ बनाने का विज्ञान है, चौथी बड़ी शाखा है और ऐसे कर कर के धातु विज्ञान है........................
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