Thursday, April 11, 2013

हमारे हिन्दू धर्म के अनुसार आज नव वर्ष है


आज  हमारे हिन्दू धर्म के अनुसार आज नव वर्ष है, यह पोस्ट इतना शेयर जरूर करें की उन्हें उनकी संस्कृति का मह्त्व समझ आ जाये ...
आप सभी को नव वर्ष की ढेरों शुभकामनायें आशा करूँगा की ये नव वर्ष आप सभी के जीवन में अपार हर्ष और खुशहाली ले कर आये.. हिन्दू पंचांग महीनो के नाम और पश्चिम में कैलेंडर में उस माह का अनुवाद ...
चैत्र--- मार्च-अप्रैल
वैशाख--- अप्रैल-मई
ज्येष्ठ---- मई-जून
आषाढ--- जून-जुलाई
श्रावण--- जुलाई - अगस्त
भाद्रपद--- अगस्त -सितम्बर
अश्विन्--- सितम्बर-अक्टूबर
कार्तिक--- अक्टूबर-नवम्बर
मार्गशीर्ष-- नवम्बर-दिसम्बर
पौष----- दिसम्बर -जनवरी
माघ---- जनवरी -फ़रवरी
फाल्गुन-- फ़रवरी-मार्च

अब क्रिकेट की, कुछ क्रिकेट के दीवानों लिए: भारतीय टीम के दो सदस्यों के नाम, आश्विन एवं कार्तिक भी हिंदी महीनो के नाम पर है,किसी क्रिकेटर का नाम है क्या भारतीय क्रिकेट टीम में अगस्त सितम्बर या जुलाई ??

आइये इस दिन की महानता के प्रसंगों को देखते हैं :-
ऐतिहासिक महत्व:
1) सृष्टि रचना का पहला दिन : आज से एक अरब 97 करोड़, 39 लाख 49 हजार 110 वर्ष पूर्व इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्मा जी ने जगत की रचना इसी दिन की थी।
2) सृष्टि के संचालन का दायित्व इसी दिन से सारे देवताओं ने संभाल लिया था।
3) 'स्मृत कौस्तुभ' के मतानुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को रेवती नक्षत्र के 'विष्कुंभ योग' में भगवान श्री विष्णु ने मत्स्यावतार लिया था।
4) प्रभु राम का राज्याभिषेक दिवस : प्रभु राम ने भी इसी दिन को लंका विजय के बाद अयोध्या आने के बाद राज्याभिषेक के लिये चुना।
5) नवरात्र स्थापना : शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात्, नवरात्र स्थापना का पहला दिन यही है। प्रभु राम के जन्मदिन रामनवमी से पूर्व नौ दिन उत्सव मनाने का प्रथम दिन।
6) इसी दिन महर्षि गौतम का जन्मदिन है।
7) गुरू अंगददेव जी का प्रकटोत्सव : सिख परंपरा के द्वितीय गुरू का जन्मदिवस।
8) संत झूलेलाल जन्म दिवस : सिंध प्रान्त के प्रसिध्द समाज रक्षक वरूणावतार संत झूलेलाल इसी दिन प्रकट हुए।
9) आर्य समाज स्थापना दिवस : समाज को श्रेष्ठ (आर्य) मार्ग पर ले जाने हेतु स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिन को आर्य समाज स्थापना दिवस के रूप में चुना।
10) डा0 हैडगेबार जन्म दिवस : राष्ट्रीय स्वयं सेवक संध के संस्थापक डा0 केशव राव बलीराम हैडगेबार का जन्मदिवस।
11) शालिवाहन संवत्सर का प्रारंभ दिवस : विक्रमादित्य की भांति शालिवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना।
12) युगाब्द संवत्सर का प्रथम दिन : 5111 वर्ष पूर्व युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ।
13) महाराष्ट्र में नव वर्ष गुडी पडवा (गुरु पर्व ) इसी दिन मनाया जाता है
14) दक्षिण भारत में नववर्ष उगादी (युगादि ) पर्व भी इसी दिन मनाया जाता है
15) इसी दिन गोवा में संसार पड़वा नव वर्ष मनाया जाता है ।

प्राकृतिक महत्व:
1. पतझड की समाप्ति के बाद वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरी होती है।
2.प्रकृति में हर जगह हरियाली छाई होती है प्रकृति का नवश्रृंगार होता है.पेड़ों पर नवीन पत्तियों और कोपलों का आगमन होता है..पतझड़ ख़तम होता है और बसंत की शुरुवात होती है..
3. चैत्र ही एक ऐसा माह है जिसमें वृक्ष तथा लताएं पल्लवित व पुष्पित होती हैं। इसी मास में उन्हें वास्तविक मधुरस पर्याप्त मात्रा में मिलता है। वैशाख मास, जिसे माधव कहा गया है, में मधुरस का परिणाम मात्र मिलता है।
4. फसल पकने का प्रारंभ यानि किसान भाइयों की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय
होता है। शरद ऋतु के प्रस्थान व ग्रीष्म के आगमन से पूर्व वसंत अपने चरम पर होता है।
5. नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अर्थात् किसी भी कार्य को प्रारंभ करने केलिये यह शुभ मुहूर्त होता है।

आध्यात्मिक महत्व :
हमारे ऋषि-मुनियों ने इस दिन के आध्यात्मिक महत्व के कारण ही वर्ष प्रतिपदा से ही नौ दिन तक शुद्ध-सात्विक जीवन जीकर शक्ति की आराधना तथा निर्धन व दीन-दुखियों की सेवा हेतु हमें प्रेरित किया। प्रात: काल यज्ञ, दिन में विविध प्रकार के भंडारे कर भूखों को भोजन तथा सायं-रात्रि शक्ति की उपासना का विधान है। असंख्य भक्तजन तो पूरे नौ दिन तक बिना कोई अन्न ग्रहण कर वर्षभर के लिए एक असीम शक्ति का संचय करते हैं। अष्टमी या नवमीं के दिन मां दुर्गा के रूप नौ कन्याओं व एक लांगुरा (किशोर) का पूजन कर आदर पूर्वक भोजन करा दक्षिणा दी जाती है।

वैज्ञानिक महत्व :
विश्व में सौर मण्डल के ग्रहों व नक्षत्रों की चाल व निरन्तर बदलती उनकी स्थिति पर ही हमारे दिन, महीने, साल और उनके सूक्ष्मतम भाग आधारित होते हैं। इसमें खगोलीय पिण्डों की गति को आधार बनाया गया है। हमारे मनीषियों ने पूरे भचक्र अर्थात 360 डिग्री को 12 बराबर भागों में बांटा जिसे राशि कहा गया। प्रत्येक राशि तीस डिग्री की होती है जिनमें पहली का नाम मेष है। एक राशि में सवा दो नक्षत्र होते हैं। पूरे भचक्र को 27 नक्षत्रों में बांटा गया। एक नक्षत्र 13 डिग्री 20 मिनिट का होता है तथा प्रत्येक नक्षत्र को पुन: 4 चरणों में बांटा गया है जिसका एक चरण 3 डिग्री 20 मिनिट का होता है। जन्म के समय जो राशि पूर्व दिशा में होती है उसे लग्न कहा जाता है। इसी वैज्ञानिक और गणितीय आधार पर विश्व की प्राचीनतम कालगणना की स्थापना हुई।
इस दिन से नया संवत्सर शुरू होता है अतः इस तिथि को नव-संवत्सर भी कहते हैं। संवत्सर अर्थात् बारह महीने का काल विशेष। संवत्सर उसे कहते हैं, जिसमें सभी महीने पूर्णतः निवास करते हो।
नव वर्ष मंगल मय हो...


No comments:

Post a Comment